भाव अब तो पाप - पुण्यों के बराबर हो गये
देवता क्योंकर जगत में आज पत्थर हो गये।१।
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थी जहाँ पर अपनेपन की लहलहाती खेतियाँ
स्वार्थ से कोमल ह्रदय के खेत ऊसर हो गये।२।
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न्याय की जब से हुई हैं कच्ची सारी डोरियाँ
तब से जुर्मोंं के महावत और ऊपर हो गये।३।
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दूध, लस्सी, घी अनादर का बने पहचान अब
पैग व्हिस्की मय पिलाना आज आदर हो गये।४।
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दुश्मनों ने की मुनादी कुछ पुरस्कारों की जब
प्राण हरने को यहाँ झट अपने तत्पर हो गए।५।
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काम जिनका घटती दूरी की दिलाना आस था
मील के पत्थर वो पथ में आज ठोकर हो गए।६।
मौलिक-अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
Comment
आ. भाई विजय शंकर जी, सादर अभिवादन ।आपको गजल अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है । उपस्थिति व स्नेह के लिए आभार ।
न्याय की जब से हुई हैं कच्ची सारी डोरियाँ
तब से जुर्मोंं के महावत और ऊपर हो गये।३।
आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी , हार्दिक बधाई , बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति हुयी। सादर।
आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति व सराहना के लिए आभार ।
हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी। बेहतरीन गज़ल।
न्याय की जब से हुई हैं कच्ची सारी डोरियाँ
तब से जुर्मोंं के महावत और ऊपर हो गये।३।
आ. भाई बसंत कुमार जी, सादर अभिवादन ।आपको गजल अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है । उपस्थिति व स्नेह के लिए आभार ।
आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी सादर नमस्कार
बहुत सुंदर गजल के लिए मुबारकबाद आपको
आ. भाई रवि शुक्ला जी, सादर अभिवादन । लम्बे अंतराल के बाद मंच और गजल पर आपकी उपस्थिति से मन हर्षित हुआ । स्नेह व उत्साहवर्धन के लिए आभार ।
त्रुटि की ओर ध्यान दिलाने के लिए धन्यवाद।
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है आपने बधाई स्वीकार करें। दूध, लस्सी, घी अनादर का बने पहचान अब इस मिसरे में अनादर की पहचान होना चाहिये शायद ।
आ. भाई अमीरूद्दीन जी, सादर अभिवादन । आपको गजल अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है । उपस्थिति व स्नेह के लिए आभार ।
इंगित मिसरे में सुधार कर लिया है । देखिएगा।
जनाब लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी आदाब, बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है आपने बधाई स्वीकार करें।
मिसरा "खून चोरी रेप दंगो के महावत और ऊपर हो गये।३। बह्र में नहीं है देखियेगा। सादर।
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