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हर सम्त अंँधेरा है इसे दूर भगाओ
है कोई मुनव्वर तो मिरे सामने आओ
क़ातिल हो तो क़ातिल की तरह पेश भी आओ
घायल हूँ मिरे ज़ख़्म पे मरहम न लगाओ
कोई न उठाएगा यहाँ बोझ तुम्हारा
शानों को ज़रा और भी मजबूत बनाओ
कश्ती को सँभालो न रहो चूर नशे में
गर डूबना है डूबो हमें तो न डुबाओ
काँटों की तो तासीर है वो चुभते रहेंगे
तुम फूल हो ख़ुशबू की तरह फैलते जाओ
ऐसे भी वो करता है सर-ए-आम फ़ज़ीहत
पर काट के कहता है मुझे उड़ के दिखाओ
मुमकिन तो न था फिर भी तुम्हें दे दी मुआफ़ी
अब छूट है तुमको नया इल्ज़ाम लगाओ
'सालिक' तो चला जाएगा दुनिया से किसी दिन
आएगा नहीं लौट के कितना भी बुलाओ
*मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
भाई हर्ष महाजन जी
सादर अभिवादन
ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए ह्रदय तल से आपका आभारी हूँ.
बहुत ही बेहतरीन अशआर आदरणीय सालिक जी । अच्छी पेशकश के लिए बहुत बहुत बधाई ।
सादर
भाई लक्ष्मण धामी जी
सादर अभिवादन
ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए ह्रदय तल से आपका आभारी हूँ.
"आ. भाई सालिक गणवीर जी, सादर अभिवादन । बेहतरीन गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।"
मुहतरमा डिंपल शर्मा जी
सादर अभिवादन
ग़ज़ल पर आपकी आमद और सराहना के लिए हृदयतल से आभार व्यक्त करता हूँ. सादर .
भाई आशीष यादव जी.
सादर अभिवादन
ग़ज़ल पर आपकी आमद और सराहना के लिए हृदयतल से आभार व्यक्त करता हूँ. सादर एवं सप्रेम. इस मंच पर आपकी उपस्थिती से प्रसन्नता हुई.
भाई ब्रजेश कुमार 'ब्रज' जी
सादर अभिवादन
ग़ज़ल पर आपकी आमद और सराहना के लिए हृदयतल से आभार व्यक्त करता हूँ. सादर एवं सप्रेम.
आदरणीय सालिक गणवीर जी नमस्ते, वाह वाह बहुत ख़ूब "पर काट के कहता है मुझे उड़ के दिखाओ" क्या कहने,हर शेर कमाल, खुबसूरत ग़ज़ल पर बधाई स्वीकार करें आदरणीय।
बहुत अच्छी ग़ज़ल बनी है।सारे शेर बहुत अच्छे लगे। मुबारकबाद स्वीकार कीजिए।
अच्छी ग़ज़ल कही है ज़नाब सालिक जी बधाई
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