तात के हिस्से में कोना आ गया
चाँद को भी सुन के रोना आ गया।१।
*
नींद सुनते हैं उसी की उड़ गयी
भाग्य में जिसके भी सोना आ गया।२।
*
खेत लेकर इक इमारत कर खड़ी
कह रहा वो बीज बोना आ गया।३।
*
डालकर थोड़ा रसायन ही सही
उसको आँखें तो भिगोना आ गया।४।
*
पा गये जगभर की खुशियाँ लोग वो
एक दिल जिनको भी खोना आ गया।५।
*
कल तलक औरों सा होने में मिटे
आज खुद सा हमको होना आ गया।६।
*
तोड़ना फितरत है उस की फूल को
हम को माला में पिरोना आ गया।७।
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
Comment
आद0 लक्ष्मण धामी मुसाफ़िरजी सादर अभिवादन।
अच्छी ग़ज़ल खिह आपने।।चर्चा भी अच्छी लगी। बधाई स्वीकार कीजिये
आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। गजल पर पुनः उपस्थिति के लिए आभार।
आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।
अब ठीक हैं ।
हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी। बेहतरीन गज़ल।
कल तलक औरों सा होने में मिटे
आज खुद सा हमको होना आ गया।६।
आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति व मार्गदर्शन के लिए आभार । इंगित मिसरों में कुछ बदलाव किया है देखिएगा
डालकर थोड़ा रसायन ही सही
उसको आँखें तो भिगोना आ गया।४।
*
पा गये जगभर की खुशियाँ लोग वो
एक दिल जिनको भी खोना आ गया।५।
जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
गुणीजनों से सहमत ।
आदरणीय लक्ष्मण धामी'मुसाफ़िर'भाई नमस्कार। भाई , कृष मिश्रा जी ने इशारा कर दिया है। सादर।
आ. भाई क्रिस जी, अभिवादन ।गजल पर उपस्थिति व उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद । इंगित मिसरों को बेहतर करने का प्रयास करता हूँ ।
आ. रचना बहन, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति व स्नेह के लिए आभार । यदि शेर भी इंगित कर देतीं तो अच्छा रहता । सादर...
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