कौन कहता घाव अपने सी रहा है आदमी
आजकल तो खून अपना चूसता है आदमी।१।
*
देवता होना नहीं पर दानवों की बात सुन
आदमी की पाँत से ही लापता है आदमी।२।
*
जब हुआ उत्पन्न होगा तब भले वरदान हो
आज धरती के लिए बस हादसा है आदमी।३।
*
प्यास होने पर मरुस्थल छान लेता नीर को
नीर पाकर प्यास अनबुझ खोजता है आदमी।४।
*
एक प्याला जो पिला दे शाम को लोगो उसे
बाप से बढ़कर कसम से मानता है आदमी।५।
*
पाटकर आँगन समूचे देखता हूँ आजकल
लालसा में खिड़कियों से झाँकता है आदमी।६।
*
देवता भगवान उसको कल्पना अब हो गये
मन्दिरों को छोड़ मरघट पूजता है आदमी।७।
*
बन गया जो भी खुदा वो देखता फिर ये नहीं
किस पे क्या गुजरी है कैसे जी रहा है आदमी।८।
(१-७-२१)
मौलिक अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
Comment
अच्छे बदलाव हैं ।
आ. रचना बहन सादर अभिवादन। गजल पर उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद। कुछ बदलाव किए हैं देखिएगा।
आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, सराहना एवं मार्गदर्शन के लिए आभार। इंगित मिसरों में बदलाव किया है देखिएगा..
/सृष्टि के आरम्भ में वरदान जैसा था मगर
आज धरती के लिए बस हादसा है आदमी'
//जाम आधा ही सही जो भी पिला दे साँझ को
बाप से बढ़ कर उसे ही मानता है आदमी'
//'देवता भगवान लगते कल्पना अब हैं उसे'
/चाहता होना खुदा है पर न रखता ये खबर
किस पे क्या गुजरी है कैसे जी रहा है आदमी'
आ. भाई ब्रिजेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए हार्दिक धन्यवाद। आ. समर जी की टिप्पणी से शंका समाधान हो गया होगा । सादर...
आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई नमस्कार। सर् की इस्लाह के बाद बेहतरीन ग़ज़ल हुई। बधाई।
जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।
'जब हुआ उत्पन्न होगा तब भले वरदान हो
आज धरती के लिए बस हादसा है आदमी'
इस शैर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,ऊला बदलने का प्रयास करें ।
'एक प्याला जो पिला दे शाम को लोगो उसे
बाप से बढ़कर कसम से मानता है आदमी'
इस शैर के ऊला में 'पियाला' शब्द का वज़्न आपने 22 लिया है,जबकि इसका सहीह वज़्न 122 होता है,ग़ालिब का शैर देखें:-
1212 1122 1212 22/112
'पिला दे ओक से साक़ी जो हमसे नफ़रत है
पियाला गर नहीं देता न दे शराब तो दे'
इस शैर को उचित लगे तो यूँ कह सकते हैं:-
'इक पियाला जो पिला दे शाम को लोगो उसे
बाप से भी बढ़ के यारो मानता है आदमी'
'देवता भगवान उसको कल्पना अब हो गये'
इस मिसरे में 'उसको' की जगह "उसकी" कर सकते हैं ।
'बन गया जो भी खुदा वो देखता फिर ये नहीं
किस पे क्या गुजरी है कैसे जी रहा है आदमी'
इस शैर का भाव स्पष्ट नहीं,इसी कारण से दोनों मिसरों में रब्त पैदा नहीं हो सका,देखियेगा ।
//मतले में सही शब्द सी है या सीं होना चाहिए?//
सहीह शब्द "सी" है ।
वाह आदरणीय खूब ग़ज़ल कही बधाई...
मतले में सही शब्द सी है या सीं होना चाहिए?सिर्फ जानकारी के लिए...सादर
आ. भाई अमीरूद्दीन जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति व सराहना के लिए धन्यवाद।
आपके पहले सुझाव से कहन का भाव प्रभावित हो रहा है । दसरे सुझाव से सहमत हूँ। सादर..
जनाब लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ, कुछ परिमार्जन भी पेश करता हूँ, देखियेेगा।
'देवता होना नहीं पर दानवों की बात सुन' ऊला मिसरे का सानी से रब्त नहीं है, ऊला चाहे तो यूँ कर सकते हैं -
देवता वो क्या बने जो दानवों सा हो गया
आदमी की पाँत से ही लापता है आदमी।२।
'बाप से बढ़कर कसम से मानता है आदमी।५। इस मिसरे का भाव स्पष्ट करने की ज़रूरत है, इसे यूंँ कह सकते हैं -
'बाप से बढ़कर उसी को मानता है आदमी' सादर।
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