मौसम को .....
सुइयाँ
अपनी रफ्तार से चलती रहीं
समय
घड़ी के बाहर खड़ा खड़ा काँपता रहा
मौसम
समय के काँधे पर
अपनी उपस्थिति की दस्तक देता रहा
बदले मौसम की बयार को छूकर
झुकी टहनियाँ
स्मृतियों में
पिछले मौसम के स्पर्श का रोमांच
सुनाती रहीं
मौसम को
वायु वेग से
रेत पर छोड़े पाँव के निशान
उड़- उड़ कर
अपनी व्यथा सुनाने लगे
मौसम को
झील के पानी में निस्तब्धता
दिखाती रही
वीचियों पर सोये हुए
समय के मौन प्रतिबिम्ब
मौसम को
ठहर गया ठिठक कर मौसम
वृक्ष से
मिट्टी में गिरे हुए
असहाय
एक पीले पत्ते को देख कर
एक दर्द की नदी बहने लगी
मौसम के अन्तस में
मौसम ने
समय को देखा
समय ने
घड़ी को
मौसम , समय , घड़ी
तीनों मौन
विधि के विधान के आगे
तीनों मजबूर
चलते ही रहना है
घड़ी ,समय
मौसम को
सुशील सरना /2-8-21
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आ. भाई सुशील जी, अच्छी रचना हुई है । हार्दिक बधाई।
मेरी जानकारी में तो सहीह शब्द 'सूई' है, आप देख लें ।
आदरणीय सुशील सरना जी आदाब, अच्छी रचना हुई है बधाई स्वीकार करें।
"वायु वेग से
रेत पर छोड़े पाँव के निशान
उड़- उड़ कर
अपनी व्यथा सुनाने लगे
मौसम को" जनाब वाक्य विन्यास की दृष्टि से क्या यहाँ "छोड़े" के स्थान पर बने, पड़े या 'छोड़े गये' जैसा कुछ नहीं होना चाहिए?
जनाब सुशील सरना जी आदाब, अच्छी रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।
'सुइयाँ' या "सूइयाँ"?
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