For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नहीं कर कुन्द पाओगे कलम की धार नेता जी

१२२२/१२२२/१२२२/१२२


तुम्हारी कुर्सी का  जब  है  यही  आधार नेता जी
कहो फिर देश की जनता लगे क्यों भार नेता जी।१।
*
सिकुड़ती देश की सीमा तुम्हें दिखती नहीं है पर
लगे करने में कुनबे  का  सदा अभिसार नेता जी।२।
*
जिताकर वोट से जनता बनाती दास से मालिक
जताते क्यों नहीं उस का  कभी आभार नेता जी।३।
*

बने केवल धनी का ही सहारा स्वार्थवश तुम हो

बसाया कब किसी निर्धन का यूँ सन्सार नेता जी।४।
*
बचाया मान कब तुमने वतन का दुश्मनों से है
महज समझौता करने को रहे तैय्यार नेता जी।५।
*
उड़ाते  मिल  बहुत  दावत  सदा  गद्दार  लोगों से
तभी खलती है सैनिक की तुम्हें ललकार नेता जी।६।
*
जगत भर में हवाला का जो कारोबार करते हैं
जुड़े उनसे तुम्हारे भी  कहो  क्यों तार नेता जी।७।
*
जुड़े हैं आपसी हित जब मिले सत्ता किसी को भी

सदन में बस दिखावे  को  ही  करते रार नेता जी।८।

*
उठाते हम उसी को  हैं  जिसे तुम तोड़ देते हो
नहीं कर कुन्द पाओगे कलम की धार नेता जी।९।
*
जलाकर राख कर देगी तुम्हारे लोभ की दुनिया
अगर बन जायेगी जनता  कभी अंगार नेता जी।१०।


मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

Views: 972

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 17, 2021 at 9:25pm

आ. भाई सालिक गणवीर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और सराहना के लिए धन्यवाद । गुणी जनों के सुझावों का संज्ञान ले लिया है । सादर..

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 17, 2021 at 9:22pm

आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार ।

Comment by सालिक गणवीर on August 17, 2021 at 7:39pm

भाई लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी
सादर अभिवादन
बहुत उम्दः ग़ज़ल कही है आपने ,गुणीजनों की इस्लाह पर अमल करें आदरणीय,

Comment by TEJ VEER SINGH on August 17, 2021 at 12:59pm

हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण धामी "मुसाफिर" जी। बहुत सुन्दर ग़ज़ल।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 12, 2021 at 1:31pm

आ. भाई आजी तमाम जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और सराहना के लिए धन्यवाद । आ. अमीरुद्दीन जी के सुझाव स्वीकार लिए हैं । सादर..

Comment by Aazi Tamaam on August 12, 2021 at 12:24pm

सुंदर ग़ज़ल के लिये ह्रदय से बधाई धामी सर

ये ग़ज़ल मुझे आपकी बेहद पसंद आई

आ अमीर जी से सहमत हूँ सुधार के विषय में

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 9, 2021 at 7:28pm

आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति व सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद। आ. भाई अमीरुद्दीन जी के सुझाव मूल गजल में सुधार लिया है । सादर..

Comment by Samar kabeer on August 9, 2021 at 6:27pm

जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।

जनाब अमीर जी के सुझाव अच्छे हैं ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 8, 2021 at 1:52pm

आ. भाई चेतन जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति व स्नेह के लिए हार्दिक धन्यवाद । 

अभिसार यहाँँ आगे बढ़ने व सक्षम बनाने के सन्दर्भ में किया गया है । आपका सुझाव भी अच्छा है ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 8, 2021 at 1:46pm

आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति व सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

बृजेश कुमार 'ब्रज' posted a blog post

गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा

सार छंद 16,12 पे यति, अंत में गागाअर्थ प्रेम का है इस जग मेंआँसू और जुदाईआह बुरा हो कृष्ण…See More
yesterday
Deepak Kumar Goyal is now a member of Open Books Online
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
Wednesday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
Wednesday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"अपने शब्दों से हौसला बढ़ाने के लिए आभार आदरणीय बृजेश जी           …"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहेदुश्मनी हम से हमारे यार भी करते रहे....वाह वाह आदरणीय नीलेश…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"आदरणीय अजय जी किसानों के संघर्ष को चित्रित करती एक बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आदरणीय नीलेश जी एक और खूबसूरत ग़ज़ल से रूबरू करवाने के लिए आपका आभार।    हरेक शेर…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय भंडारी जी बहुत ही खूब ग़ज़ल कही है सादर बधाई। दूसरे शेर के ऊला को ऐसे कहें तो "समय की धार…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय रवि शुक्ला जी रचना पटल पे आपका हार्दिक अभिनन्दन और आभार। लॉगिन पासवर्ड भूल जाने के कारण इतनी…"
Wednesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
May 31
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
May 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service