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पाँच दोहे : उच्छृंखल संकोच // -- सौरभ

चकाचौंध की चुप्पियाँ, मौन शोर का देश
अँधियारे के गाँव में, सूरज करे प्रवेश ।।
 
रोम-रोम में चाँदनी, घटता-बढ़ता ज्वार 
मधुर-मदिर खनकार का कितना चुप संसार !
 
मन में है विस्तार औ' आँखों में है लोच 
लेप रही तिर्यक लहर, उच्छृंखल संकोच 
 
अधरों पर मोती सजल, आँखों में उद्भाव
लरजन में उद्वेग का कारण व्यक्त झुकाव
 
सूरज कैसे देखिए, औंधा पड़ा उदास 
जुगनू की लफ्फाजियाँ, हुई प्रतीची खास 
****
-- सौरभ
 
(मौलिक और अप्रकाशित)
 
 
प्रतीची = पश्चिम 
 

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Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on September 28, 2021 at 9:33pm

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी आदाब, बहुत सुंदर और अर्थपूर्ण दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई स्वीकार करें।

अधरों पर मोती सजल, आँखों में उद्भाव

लरजन में उद्वेग का कारण व्यक्त झुकाव.  इस दोहे के प्रथम चरण को छोड़कर शेष का अर्थ नहीं समझ सका हूँ  'उद्भाव' शब्द जिसका मूल 'उद्भव' है को किन अर्थों में प्रयोग किया गया है कृपया समझाने की कृपा कर अनुगृहीत करें। सादर। 

Comment by Samar kabeer on September 27, 2021 at 3:10pm

जनाब सौरभ पाण्डेय जी आदाब, बहुत उम्द: दोहे रचे आपने, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

चकाचौंध की चुप्पियाँ, मौन शोर का देश
अँधियारे के गाँव में, सूरज करे प्रवेश ।।
वाह क्या उपमा दी है,बहुत ख़ूब ।
 
रोम-रोम में चाँदनी, घटता-बढ़ता ज्वार 
मधुर-मदिर खनकार का कितना चुप संसार !
क्या कहने वाह ।
 
मन में है विस्तार औ' आँखों में है लोच 
लेप रही तिर्यक लहर, उच्छृंखल संकोच 
बहुत ख़ूब, उम्द: कहन ।
 
अधरों पर मोती सजल, आँखों में उद्भाव
लरजन में उद्वेग का कारण व्यक्त झुकाव
ये दोहा भी ख़ूब है ।
 
सूरज कैसे देखिए, औंधा पड़ा उदास 
जुगनू की लफ्फाजियाँ, हुई प्रतीची खास
बहुत ख़ूब ! ये भाव कुछ जाना पहचाना सा लगा,आप ही की किसी पुरानी ग़ज़ल में है शायद ।

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