For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल-रो पड़ेगा....बृजेश कुमार 'ब्रज'

1222     1222      122   

मिलेगा और  मिल  कर रो पड़ेगा

मुझे  देखेगा  तो  घर  रो  पड़ेगा

न जाने क्यों कहाँ खोया रहा हूँ

मेरी  आहट पे ही दर   रो पड़ेगा

मुझे  वो  भूल  जाने  के  लिये ही
करेगा  याद  अक़्सर  रो  पड़ेगा

हँसी मुस्कान होंठों  पे  सजाकर
कोई  इंसान  अंदर  रो  पड़ेगा


भले  ही  मौत  दे  देगा  मुझे पर
वो क़ातिल और खंज़र रो पड़ेगा

तुम्हारी आँख  से आँसू बहे गर
यहाँ  'ब्रज' में समंदर रो पड़ेगा
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

Views: 562

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 14, 2021 at 10:19pm

आदरणीय अमीरुद्दीन जी ग़ज़ल पे शिरकत और हौसलाफजाई के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया...

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 14, 2021 at 10:18pm

आदरणीय नीलेश जी...ग़ज़ल को बारीक नजर से परखने के लिए आपका हार्दिक आभार...मतले को लेकर आपका सुझाव बहुत ही खूब है...और आपके कहे अनुसार बाकी मिसरे मांजने की कोशिश करूँगा...स्नेह बनाये रखें...

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 14, 2021 at 5:02pm

जनाब बृजेश कुमार 'ब्रज' जी आदाब, ग़ज़ल की अच्छी कोशिश हुई है मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाएं। गुणीजनों की बातों का संज्ञान लें। सादर। 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 14, 2021 at 8:51am

आ. ब्रज जी 
ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है.
मतले के मिसरे आपस में बदल कर देखें 

मिलेगा और  मिल  कर रो पड़ेगा
मुझे  देखेगा  तो  घर  रो  पड़ेगा... इससे बात थोड़ी लेट खुलती है और शेर चौंकाने वाला हो जाता है..
इस ग़ज़ल के कई मिसरे बहुत बारीक सी फाइन ट्यूनिंग चाहते हैं.. थोडा और समय दीजिये रचना को ताकि यह और निखर सके.
..
वो मुझ को भूल जाने ही की ज़िद में ..
करेगा याद अक्सर रो पड़ेगा .. ऐसे छोटे छोटे परिवर्तन ग़ज़ल रंग को और बढ़ाएंगे..
सादर 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 11, 2021 at 8:21pm

आदरणीय समर कबीर जी...रचना पटल पे आपका स्वागत संग आभार व्यक्त करता हूँ...दूसरे शे'र में कुछ सुधार की कोशिश करता हूँ और विराम चिन्ह वाली आपकी सलाह का आगे ध्यान रखूँगा... सादर

Comment by Samar kabeer on October 11, 2021 at 6:49am

जनाब बृजेश कुमार `ब्रज` जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें I 

`न जाने क्यों?कहाँ खोया रहा हूँ?
मेरी  आहट सुनी, दर   रो पड़ेगा`

इस शे`र के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है, देखिएगा I 

एक बात ये ध्यान में रखें कि ग़ज़ल में विराम चिन्हों का प्रयोग उचित नहीं होता I 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 10, 2021 at 10:16am

आदरणीय धामी जी...धन्यवाद स्नेह बनाये रखें...

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 10, 2021 at 10:15am

ग़ज़ल पे आपकी हौसलाफजाई का शुक्रिया आदरणीय वर्मा जी...सदर

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 9, 2021 at 6:46am

आ. भाई बृजेश कुमार जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।

Comment by Shyam Narain Verma on October 8, 2021 at 11:31am
नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
2 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service