For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -दिल लगाना छोड़ दें

2122 2122 2122 212

1

अश्क पीना छोड़ दें हम दिल लगाना छोड़ दें 

एक उनकी मुस्कुराहट पर ज़माना छोड़ दें

2

हर किसी के आप दिल में आना जाना छोड़ दें

इश़्क को सौदा समझ क़ीमत लगाना छोड़ दें

3

कह दें अपनी चूड़ियों से खनखनाना छोड़ दें 

दिल के रिसते ज़ख़्मों पर यूँ सरसराना छोड़ दें

4

लग गए हों ताले ख़ामोशी के जिनके होठों पर 

उनसे उम्मीदें सदाओं की लगाना छोड़ दें 

5

कब तलक फिरते रहेंगे आप ग़म के सहरा में 

इस सराब-ए-दिल से अब तो धोका खाना छोड़ दें

6

चाहते हैं शिद्दत-ए-एहसास-ए-गम कम करना तो 

रात दिन यूँ आप अश्कों को बहाना छोड़ दें

7

कान के कच्चे जहाँ के सब दर-ओ-दीवार हों

उस जगह को राज़-दाँ अपना बनाना छोड़ दें

8

गर्दिश-ए-अय्याम आती ही है जाने के लिए 

आप इसके डर से 'निर्मल' सर झुकाना छोड़ दें 

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 503

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Rachna Bhatia on April 10, 2022 at 12:45pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' भाई आपने सहीह कहा सर् की इस्लाह के बाद ग़ज़ल अच्छी हो गई है।

आपका हार्दिक आभार।

Comment by Rachna Bhatia on April 10, 2022 at 12:43pm

आदरणीय चेतन प्रकाश जी नमस्कार। आपने बिल्कुल सही कहा आदरणीय समर कबीर सर् के द्वारा दी गई इस्लाह के बाद उसमें न केवल और सुधार की गुंजाइश नहीं रहती बल्कि ग़ज़ल भी ग़ज़ल कहलाने लाइक़ हो जाती है। इसके लिए हम सब समर कबीर सर् के बहुत बहुत आभारी हैं।

आदरणीय ग़ज़ल में रह गई त्रुटि को इंगित करने के लिए हार्दिक धन्यवाद,पर मुझे इस शे'र में एब दिखाई नहीं दे रहा है। कृपया आप इसे थोड़ा बारीकी से समझाएँ व शे'र ठीक करने के लिए कुछ सुझाव दें।

सादर।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 10, 2022 at 6:45am

आ. रचना बहन सादर अभिवादन। सुन्दर गजल हुई है। भाई समर जी के सुझाव से यह और निखर गयी है । हार्दिक बधाई।

Comment by Chetan Prakash on April 9, 2022 at 1:40pm

नमन, आदरणीया, अच्छी  ग़ज़ल हुई हुई है, और श्रद्धेय  समर कबीर साहब  ने भी बहुत अच्छे  से बारीकियाँ  सोदाहरण  समझाईं हैं ! फिर  भी ' कान के कच्चे  जहाँ सब दर ओ दीवार  हों' मुझे लगता है, उक्त   ऊला मिसरे  में एब-ए-तनाफुर का दोष  है, देखिएगा,  सादर  !

Comment by Rachna Bhatia on April 8, 2022 at 8:18pm

आदरणीय पंकज कुमार मिश्रा जी, नमस्कार। आपने बिल्कुल सही कहा सर् की इस्लाह के बाद ग़ज़ल अच्छी हो गई है।

हार्दिक धन्यवाद।

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on April 7, 2022 at 5:25pm

आदरणीय रचना जी बाऊजी ने समुचित सुझाव दिए हैं, इसलिए इस ख़ूबसूरत ग़ज़ल पर और कहने की आवश्यकता नहीं है। उनके सुझावों को अमल में लायें.... लेखनी में निखार आएगा।

Comment by Rachna Bhatia on April 6, 2022 at 3:13pm

आदरणीय समर कबीर सर् सादर नमस्कार। सर्, आपने बेहतरीन इस्लाह दी जिस कारण ग़ज़ल अच्छी हो गई।आपका बेहद शुक्रिय:।

Comment by Samar kabeer on April 6, 2022 at 2:55pm

मुह्तारमा रचना भाटिया जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें I 

'रात दिन गर आप अश्कों को बहाना छोड़ दें'

इस मिसरे को यूँ कहना उचित होगा :-

'रात दिन यूँ आप अश्कों को बहाना छोड़ दें '

'कान की कच्ची जहाँ की हर दर ओ दीवार हो

उस जगह को राज़-दाँ अपना बनाना छोड़ दें'

इस शे`र को उचित लगे तो यूँ कहें :-

'कान के कच्चे जहाँ के सब दर-ओ-दीवार हों 

उस जगह को राज़ दाँ अपना बनाना छोड़ दें'

'गर्दिश-ए-अय्याम आतीं हीं हैं जाने के लिए'

आप उनके डर से "निर्मल" सर झुकाना छोड़ दें'

इस शे`र को यूँ कहें :-

गर्दिश-ए-अय्याम आती ही है जाने के लिए 

आप इसके डर से 'निर्मल' सर झुकाना छोड़ दें '

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted discussions
19 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
19 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति,उत्साहवर्धन और स्नेह के लिए आभार। आपका मार्गदर्शन…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ भाई , ' गाली ' जैसी कठिन रदीफ़ को आपने जिस खूबसूरती से निभाया है , काबिले…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील भाई , अच्छे दोहों की रचना की है आपने , हार्दिक बधाई स्वीकार करें "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है , दिल से बधाई स्वीकार करें "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , खूब सूरत मतल्ले के साथ , अच्छी ग़ज़ल कही है , हार्दिक  बधाई स्वीकार…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service