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चेहरे के पीछे
चेहरे है
उन पे कसे नकाब
बड़े तगड़े है..
मीठे बोलो के भीतर
तीखेपन का खंजर है..
घावों पे मरहम तो है
पर दाग बने गहरे है
लोग बने मदारी है.. और
समझे हमे जमूरा
मतलब की यारी है और
जमकर सीनाजोरी है
संभल संभल के हँसना है और
नाप तोल के कहना
मन के दुखड़े खोले तो
कहते है रोना धोना
खुल के जीने का
दम भर लो कितना भी
पर बच बच के है रहना
दुनिया गर नाटक है तो
हम कब तक रहेगे एक्टर
कभी तो आने दो हमको
जो है हम
हम बन कर ....

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Comment

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Comment by MAHIMA SHREE on March 13, 2012 at 11:28am
मयंक जी
स्वागत है आपका...धन्यवाद्
Comment by MAHIMA SHREE on March 13, 2012 at 11:27am
परम आदरणीय प्रदीप सर
सादर चरणस्पर्श ,
आपका आशीर्वाद हमेशा मेरे साथ है.....इसलिए तो यंहा हम कुछ कर पा रहे है....स्नेह बनाये रखे...आपका बहुत -२ धन्यवाद्.
Comment by MAHIMA SHREE on March 13, 2012 at 11:18am
राकेश जी बहुत धन्यवाद...सही कहा छन्द मुक्त कविताओं को याद रखना मुश्किल होता है . मै स्वय अपनी कविता याद नहीं रख पाती ....आभारी हूँ...
Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 13, 2012 at 10:11am

खुल के जीने का
दम भर लो कितना भी
पर बच बच के है रहना,,,,,

उम्दा पंक्तियाँ और विचार. बहुत बहुत बधाई. मैं देखता हूँ की छन्द मुक्त कविताओं मे भाव बहुत सुंदर निखर के आ रहे हैं. मेरी गुज़ारिश है की कभी इन्हे तुक ले मे भी बाँध के देखिए. क्योंकि कविता याद करने की चीज़ है, और ये याद रख पाना मुश्किल होता है.

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 13, 2012 at 9:59am

दुनिया गर नाटक है तो
हम कब तक रहेगे एक्टर
कभी तो आने दो हमको
जो है हम
हम बन कर ....

स्नेही महिमा जी,  निश्चित तौर पर आप लोगों को आगे आना है . एक्टर बनके नहीं , वास्तविक रूप में.  बहुत सुन्दर भाव पूर्ण अभिव्यक्ति. बधाई.


Comment by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on March 12, 2012 at 8:53pm

अच्छी रचना है....धन्यवाद

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