निजत्व की खातिर
कर्तव्यो की बलिवेदी से
कब तक भागेगा इन्सान
ऋण कई हैं
कर्म कई हैं
इस मानव -जीवन के
धर्म कई हैं
अचुत्य होकर इन सबसे
क्या कर सकेगा
कोई अनुसन्धान
कई सपने हैं
कई इच्छाये हैं
पूरी होने की आशाये हैं
पर विषयों के उद्दाम वेग से
कब तक बच सकेगा इन्सान
भीड़-भाड़ है
भेड़-चाल है
दाव-पेंच के
झोल -झाल है
इनसे बच कर अकेला
कब तक चलेगा इन्सान
कौन है ईश्वर
जीवन क्या है
मै कौन हूँ
क्यूँ आया हूँ
जिज्ञासायों के कई भंवर हैं
डूब के इनमे
अपनों से कब तक
मुख मोड़ सकेगा इन्सान
Comment
वाह.. जीवंत रचना... बधाई..
आदरणीया महिमा श्री जी..
बेहतरीन और शानदार प्रस्तुति...महीने की सर्वश्रेष्ठ रचना हेतु चयनित होने पर आपको कोटिशः बधाइयाँ
कर्तव्यो की बलिवेदी से
कब तक भागेगा इन्सान
ऋण कई हैं
कर्म कई हैं
इस मानव -जीवन के
धर्म कई हैं............................बहुत ही उम्दा.
अचुत्य होकर इन सबसे
क्या कर सकेगा
कोई अनुसन्धान....वाह!
कई सपने हैं
कई इच्छाये हैं
पूरी होने की आशाये हैं
पर विषयों के उद्दाम वेग से
कब तक बच सकेगा इन्सान........सटीक आशंका.
भीड़-भाड़ है
भेड़-चाल है
दाव-पेंच के
झोल -झाल है................सत्य-वचन.
इनसे बच कर अकेला
कब तक चलेगा इन्सान
कौन है ईश्वर
जीवन क्या है
मै कौन हूँ
क्यूँ आया हूँ
जिज्ञासायों के कई भंवर हैं..........अनगिनत...असंख्य......अनंत...
डूब के इनमे
अपनों से कब तक
मुख मोड़ सकेगा इन्सान....महिमा श्री जी.....पहले तो आपको बधाई...माह का सर्वश्रेष्ठ होने के लिये साथ ही इतनी विचार-श्रेष्ठ रचना हेतु साधुवाद .........कुल मिला कर लाजवाब.
आदरणीय मयंक सर,
नमस्कार , आपका बहुत -२ हार्दिक धन्यवाद
आदरणीया महिमा श्री जी..
बेहतरीन और शानदार प्रस्तुति...महीने की सर्वश्रेष्ठ रचना हेतु चयनित होने पर आपको कोटिशः बधाइयाँ
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