रात्रि का अंतिम प्रहर घूम रहा तनहा कहाँ
थी ये वो जगह आना न चाहे कोई यहाँ
हर तरफ छाया मौत का अजीब सा मंजर हुआ
घनघोर तम देख साँसे थमी हर तरफ था फैला धुआं
नजर पड़ी देखा पड़ा मासूम शिशु शव था
हुआ जो अब पराया वो अपना कब था
कौंधती बिजलियाँ सावन सी थी लगी झड़ी
कौन है किसका लाल है देख लूं दिल की धड़कन बढ़ी
देखा तनहा उसे सर झुकाए समझ गया कि उसकी दुनिया लुटी
जल रही थी चिताएं आस पास ले रही थी वो सिसकियाँ घुटी घुटी
देती कफ़न क्या कैसे देती आग थे तार तार वस्त्र और उसके भाग्य
आस थी मिले कफ़न दूँ चिता लाल को दे न सकी हाय रे दुर्भाग्य
देख दशा उस लाल की प्रक्रति भी जार जार रोई
हो न ऐसा कभी ऐ खुदा चिता/कफ़न को भी तरसे कोई
Comment
adarniya rita ji, sadar abhivadan sneh ke liye abhar.
adarniya singh sahab ji. sadar abhivadan. bhavna samjhi apne shram sarthak hua. dhanyavad.
adaraniy pradip ji, sadar namaskar , sundar rachna ke liye badhai
हो न ऐसा कभी ऐ खुदा चिता/कफ़न को भी तरसे कोई!
aapne nivedan swikara. aap kahin na jaiye. dil main ghar kar chuke hain . nirbal jaan ke hath na chodiye. jo prshn hain ve vasvik hain. madad mangi hai. chat par mobile no dunga.
आदरणीय प्रदीप जी,
सादर !
बुढ़ौती में गुस्सा मत होईये ! धड़कन बढ़ जायेगी !
एक तरफ तो आदेश देते हैं, दूसरी तरफ नाराज भी
होते हैं ! अब हम सोच रहे हैं कि "जायें तो जायें कहाँ "?
आदरणीय शशि जी, हम तो पहले से ही आपकी कविताओं के मुरीद रहे हैं, इस रचना मे साक्षात 'मैथिली शरण गुप्त' जी विराज मान लगते हैं. प्रदीप जी एवं शशि जी दोनो लोग को बधाई.
आदरणीय शशि भूषण जी,
वास्तव में आपने आदरणीय प्रदीप जी की कविता को एक नया बेहतर कलेवर प्रदान किया है| आपकी श्रेष्ठता के आगे नतमस्तक हूँ|
स्नेही महिमा जी. सादर . सत्य है . समर्थन हेतु बधाई आपको भी.
आदरणीय शशि भूषण जी, सादर अभिवादन.
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