For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रात्रि का अंतिम प्रहर घूम रहा तनहा कहाँ

थी ये वो जगह आना न चाहे कोई यहाँ

हर तरफ छाया मौत का अजीब सा मंजर हुआ

घनघोर तम देख साँसे थमी हर तरफ था फैला धुआं

नजर पड़ी देखा पड़ा मासूम शिशु शव था

हुआ जो अब पराया वो अपना कब था

कौंधती बिजलियाँ सावन सी थी लगी झड़ी

कौन है किसका लाल है देख लूं दिल की धड़कन बढ़ी

देखा तनहा उसे सर झुकाए समझ गया कि उसकी दुनिया लुटी

जल रही थी चिताएं आस पास ले रही थी वो सिसकियाँ घुटी घुटी

देती कफ़न क्या कैसे देती आग थे तार तार वस्त्र और उसके भाग्य

आस थी मिले कफ़न दूँ चिता लाल को दे न सकी हाय रे दुर्भाग्य

देख दशा उस लाल की प्रक्रति भी जार जार रोई

हो न ऐसा कभी ऐ खुदा चिता/कफ़न को भी तरसे कोई

Views: 977

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 2, 2012 at 10:36pm

adarniya rita ji, sadar abhivadan sneh ke liye abhar. 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 2, 2012 at 10:35pm

adarniya singh sahab ji. sadar abhivadan. bhavna samjhi apne shram sarthak hua. dhanyavad.

Comment by Rita Singh 'Sarjana" on April 2, 2012 at 10:26pm

adaraniy pradip ji, sadar namaskar , sundar rachna ke liye badhai

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on April 2, 2012 at 10:11pm

हो न ऐसा कभी ऐ खुदा चिता/कफ़न को भी तरसे कोई!

 हालाँकि सत्य हरिश्चंद्र नाटक में अपने पुत्र  रोहिताश्व की माँ से आधा कफ़न मांगने में राजा हरिश्चंद्र सख्ती दीखते नजर आते है वहीं बर्तेंदु सुनते हैं मरनो भलो विदेश में जहाँ न अपना कोय, 
माटी खाय जानवरा महा महोत्सव होय! कुछ ऐसी ह्रदय विदारक दृश्य उपस्थित किया है आपने!
आपकी संवेदनशीलता  को नमन!
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 19, 2012 at 11:01pm

aapne nivedan swikara. aap kahin na jaiye. dil main ghar kar chuke hain . nirbal jaan ke hath na chodiye. jo prshn hain ve vasvik hain. madad mangi hai. chat par mobile no dunga. 

Comment by Dr. Shashibhushan on March 19, 2012 at 7:44pm

आदरणीय प्रदीप जी,
सादर !
बुढ़ौती में गुस्सा मत होईये ! धड़कन बढ़ जायेगी !
एक तरफ तो आदेश देते हैं, दूसरी तरफ नाराज भी
होते हैं ! अब हम सोच रहे हैं कि "जायें तो जायें कहाँ "?

Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 19, 2012 at 2:31pm

आदरणीय शशि जी, हम तो पहले से ही आपकी कविताओं के मुरीद रहे हैं, इस रचना मे साक्षात 'मैथिली शरण गुप्त' जी विराज मान लगते हैं. प्रदीप जी एवं शशि जी दोनो लोग  को बधाई.

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 19, 2012 at 2:07pm

आदरणीय शशि भूषण जी,

वास्तव में आपने आदरणीय प्रदीप जी की कविता को एक नया बेहतर कलेवर प्रदान किया है| आपकी श्रेष्ठता के आगे नतमस्तक हूँ|

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 19, 2012 at 1:07pm

स्नेही महिमा  जी. सादर . सत्य है . समर्थन हेतु  बधाई आपको भी. 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 19, 2012 at 1:05pm

 आदरणीय शशि भूषण   जी, सादर अभिवादन. 

यंहां  सीखने आया हूँ. छंद , रस , अलंकार. दोहा, सवित्त , आदि के तकनीकी पक्ष का ज्ञान नहीं है.  सबकी देखा देखी मैं भी नाल ठुकवाने लगा.  भ्रमित हो गया. आत्मविश्वास कम हुआ.  कोई ये तो बताये की में कैसे सुधार लाओं.  किताबें कहाँ मिलेंगी. कौन सी किताब पढनी है.
स्नेह प्राप्त हुआ.  अब ये रचना तो आपकी हो गई. संशोधन कैसे जारी करूँ.  धन्यवाद. 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी रचना का संशोधित स्वरूप सुगढ़ है, आदरणीय अखिलेश भाईजी.  अलबत्ता, घुस पैठ किये फिर बस…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, आपकी प्रस्तुतियों से आयोजन के चित्रों का मर्म तार्किक रूप से उभर आता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"//न के स्थान पर ना के प्रयोग त्याग दें तो बेहतर होगा//  आदरणीय अशोक भाईजी, यह एक ऐसा तर्क है…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, आपकी रचना का स्वागत है.  आपकी रचना की पंक्तियों पर आदरणीय अशोक…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी प्रस्तुति का स्वागत है. प्रवास पर हूँ, अतः आपकी रचना पर आने में विलम्ब…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद    [ संशोधित  रचना ] +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी सादर अभिवादन। चित्रानुरूप सुंदर छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी  रचना को समय देने और प्रशंसा के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। चित्रानुसार सुंदर छंद हुए हैं और चुनाव के साथ घुसपैठ की समस्या पर…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी चुनाव का अवसर है और बूथ के सामने कतार लगी है मानकर आपने सुंदर रचना की…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी हार्दिक धन्यवाद , छंद की प्रशंसा और सुझाव के लिए। वाक्य विन्यास और गेयता की…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service