मेरे बचपन के एक मित्र के बड़े भैया पढ़ने में बड़े तेज़ थे, और पूरे मोहल्ले में अपनी आज्ञाकारिता और गंभीरता के लिए प्रसिद्ध थे. भैया हम लोगो से करीब 5 साल बड़े थे तो हमारे लिए उनका व्यक्तित्व एक मिसाल था, और जब भी हमारी बदमाशियो के कारण खिचाई होती थी तो उनका उदहारण सामने जरूर लाया जाता था. सभी माएं अपने बच्चो से कहती थी की कितना 'सीधा लड़का' है. माँ बाप की हर बात मानता है. कभी उसे भी पिक्चर जाते हुए देखा है?
मेधावी तो थे ही, एक बार में ही रूरकी विश्वविद्यालय में इन्जिनेअरिंग में दाखिला मिल गया. कालेज के अपने दोस्तों के बीच भी वो आदर्श थे. किसी लड़की के पास जरूरत से ज्यादा उन्हें नहीं देखा गया. और शायद यही वजह थी कि बी टेक में गोल्ड मेडल पा सके. वहा से पास होते ही नौकरी भी लग गई.
किन्तु उनके पिताजी को IAS से बड़ा ही सम्मोहन था और वो अपने लडके को किसी जिले का मालिक देखना चाहते थे. इसलिए उन्हें नौकरी से वापस बुला लिया और IAS का भी इम्तिहान देने को कहा. भैया इतने आज्ञाकारी थे कि नौकरी छोड़ के आ गए. उन्होने फिर से अपनी प्रतिभा का परिचय देते हुए IAS का इन्मिताहं पास किया. अब क्या था! उनके पिताजी जी कि ख़ुशी का ठिकाना न था. हर जगह मिठाई बाटते फिरे. और कहते फिरते थे की "आखिर IAS का दहेज़ भी तो हमारे समाज में सबसे ज्यादा होता है".
भैया IAS की ट्रेनिंग के लिए चले गए. उनके पिताजी को लग रहा था कि जल्द से जल्द शादी करके अब अपनी सभी जिम्मेदारियों से मुक्ति पा ली जाए. दिन बीतते गए और तरह तरह के संपन्न रिश्ते आते रहे. किन्तु हमारे भैया किसी न किसी तरह से उसे मना कर देते थे. उन की इस हरकत की वजह से तमाम सारे क्षेत्रीय संपन्न रिश्ते हाथ से निकले जा रहे थे. और लोग भी तरह तरह की बातें करने लगे थे.
एक दिन मेरे मित्र के पिताजी सुबह सुबह ही चिल्ला रहे थे. लोगो कि भीड़ जमा हो गई घर के सामने. पता चला कि भैया की ट्रेनिग ख़तम हुई है और वो पोस्ट ज्वाइन करने से पहले कुछ दिनों के लिए घर आये हैं. थोड़ी ही देर में बात सामने आ गई. दरअसल भैया साथ में बहू और 2 साल का एक बच्चा भी लाये थे. हम सभी लोगो को ये बात जैसे गुलर में फूल आ जाने जैसी लगी. किन्तु बात सच थी. चाचा जी को जैसे तैसे समझाया गया, उनका ब्लड प्रेशर बहुत बढ़ा हुआ था सो एक दो दिन हास्पिटल में रखना पड़ा.
खैर सभी ने आपने अपने तरीके से इस बात को हजम किया. लड़की के घर वालो को बुला कर भैया की फिर से पारंपरिक तरीके से शादी कराई गई, बहू अच्छी थी थोड़े ही दिनों में उसने घर में सबका दिल जीत लिया और मोहल्ले के बड़ी बूढी औरतो को भी भा गई. बस भैया का 'सीधा लड़का' वाला तमगा छीन लिया गया. और वो फिर से एक उदहारण बन गए, थोडा दूसरे सन्दर्भ के लिए.
अब जब कभी भी हमारे मोहल्ले में कोई प्रेम प्रलाप होता है तो घर वाले उसका विरोध नहीं करते. बल्कि भैया वाली बात की उलाहना देते हैं और कहते हैं की जहाँ आप लोग की मर्जी शादी कर लेना मगर इस तरह अचानक से बहू और बच्चा ला के 'हार्ट अटैक' मत देना.
बहुत संपन्न होने के बाद भी चाचा जी को दहेज़ न मिल पाने की खलिश आज भी कभी कभी सताती है.
Comment
बहुत ही सार्थक सन्देश देती कहानी लिखी आपने| बधाईयां राकेश भाई!
आशीष भाई, आपको कहानी पसंद आई, लिखना सार्थक रहा. मैंने बस हास्य व्यंग्य के लिए लिखा था, अगर कुछ सन्देश दे रही है, तो ये पढ़ने वाली कि नजर पर है. धन्यवाद.
लड़का सीधा था, सीधेपन से सब कुछ किया| नए अंदाज़ में ये कहानी पसंद आई|
आदरणीया राजेश कुमारी जी, एवं श्री जवाहर जी, सादर अभिनन्दन. कहानी पसंद आई इसके लिए आभार. जैसा की आप लोगो ने स्वयं कहा है की दहेज़ एक कुप्रथा है, बात सही है, किन्तु इसके लिए पढ़े लिखे लोग भी बहुत जिम्मेवार हैं, जो भौतिक रूप से तो पढ़ लिए हैं किन्तु नैतिक शिक्षा का आभाव है. और बहुत कुछ हमारे सामाजिक संरचना पर भी है, कि माँ बाप को लगता है कि एक बार कुछ दान दक्षिणा दे कर लड़की को घर से विदा कर दिया जाए. कुछ राज्यों में जैसे केरला इत्यादी में मात्रु सत्तात्मक व्यवस्था होने के कारण लड़की को भी बराबर का हिस्सा मिलता है, जबकि उत्तर भारत में लड़की को बोझ कि तरह बड़ा करके हमेशा विदा करने कि ही तैयारी मे लगे रहते हैं, हांलाकि इसमे एक मूलभूत और व्यापक बदलाव आ चुका है. सादर!
आजकल आत्मनिर्भर बच्चे सोच समझ कर फेंसले लेते हैं नई पीढ़ी ही दहेज़ जैसे संक्रामक रोग से पीछा छुड़ा सकती है कितना अच्चा होता की उस होनहार लड़के से पिता एक दोस्त जैसा व्यवहार करते तो वो ख़ुशी ख़ुशी अपनी पसंद पिता जी को बता देते और विवाह रीतिनुसार होता बड़ों का आशीर्वाद मिलता और पिता श्री को सदमा भी नहीं लगता .आपकी सच्ची कहानी अच्छा सन्देश दे रही है|
बहुत ही अच्छा उदहारण पेश किया है आपने! पिताजी को अगर बहू अच्छी मिल गयी तो उसे ही दहेज़ मान लेना चाहिए!
snehi rakesh ji, sadar naye kalevar ke sath. badhai.
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