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पूरे मोहल्ले में यह चर्चा थी कि गुड़िया को एड्स की बीमारी है | दरअसल उसका पति एक सरकारी मुलाज़िम था जो कि सिर्फ़ २५ वर्ष की आयु में ही अचानक किसी रहस्यमयी बीमारी का शिकार होकर दुनिया छोड़ गया था | एड्स पर काम कर रही एक स्वयंसेवी संस्था के कार्यकर्ता बहुत समझा-बुझा कर गुड़िया को एड्स की जाँच करवाने अपने साथ ले गए थे | गुड़िया को जो सरकारी पेंशन मिलती थी उसी से किसी तरह अपना जीवन यापन कर रही थी |
 
जाँच करने वाले डॉक्टर ने बड़ी हैरानी से पूछा कि रिपोर्ट में तो तुम्हें कोई बीमारी नहीं है, तुम तो बिल्कुल स्वस्थ हो, फिर यह एड्स का अफ़वाह क्यों ? तुम लोगों को मुँहतोड़ जवाब क्यों नहीं देती ? हाथ जोड़ कर गुड़िया बोली,"डॉक्टर साहिब, आप से विनती है यह बात किसी से भी मत कहिएगा, एक जवान बेवा अपनी इज़्ज़त खूँखार भेड़ियों से अभी तक इसी अफ़वाह के सहारे ही बचाती रही है, भगवान् के लिए मेरा यह कवच मुझ से मत छीनिए...... !"

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 15, 2012 at 10:46pm

उत्साहवर्धन हेतु आभार आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी |


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 15, 2012 at 10:45pm

आदरणीय सतीश मापतपुरी जी आप जैसे कहानीकार से तारीफ़ पाना किसी पुरस्कार से कम नहीं है , सराहना हेतु आभार आपका |

Comment by MAHIMA SHREE on April 15, 2012 at 10:43pm
आदरणीय बागी जी
 नमस्कार , आपने तो एक ही शब्द से समाज को उसका चेहरा दिखा दिया .
सच कितना खौफनाक चेहरा है समाज का एक स्त्री को अपनी सुरक्षा के लिए कैसे बहाने का सहारा लेना पड़ता  है/ बेहद सोचनीय और मार्मिक
आपको बहुत-२ बधाई
 
 
 
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 15, 2012 at 9:43pm

 कवच प्रभावी लघु कथा है, यदि लाज बचने हेतु

 झूठ का कवच भी ओढ़ना पड़े, तो कोई बुरे नहीं |

बधाई गणेशजी - लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला
Comment by satish mapatpuri on April 15, 2012 at 9:18pm

एक जवान बेवा अपनी इज्जत खूंखार भेडियों से अभी तक इसी अफवाह के सहारे ही बचाती रही है, भगवान् के लिए मेरा यह कवच मुझ से मत छीनिए "
वाह... वाह ... गणेश जी , कितनी चुभती हुई बात कह गए ........ यह व्यंग सीधे सीधे दिल में नश्तर की तरह उतर गया .............. बहुत ...बहुत,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, बधाई


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 15, 2012 at 8:45pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी , कथा के आत्मा तक पहुच कर टिप्पणी हेतु आभार |


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 15, 2012 at 8:44pm

आदरणीय जवाहर जी, सराहना हेतु आभार आपका |


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 15, 2012 at 8:43pm

टिप्पणी हेतु आभार आदरणीया अनामिका घटक जी |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 15, 2012 at 8:36pm

बागी जी यह लघु कथा हमारे समाज के गाल पर एक तमाचा है जहां अपनी इज्जत बचाने के लिए नारी को एसे दर्दनाक कवच को भी स्वीकारना मंजूर है 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on April 15, 2012 at 8:33pm
आदरणीय महाशय, सादर अभिवादन!
आपने एक लघुकथा के बहाने कितनी मर्मान्तक बात कह डाली!
ये खूंखार भेड़िये........! 

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