For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

 मैंने अपने अंदर बना डाले हैं

अजीब से दायरे 

अनेक बंधन 

अनेक विचार 

मैंने पाल रखे हैं

अजीब सी मान्यताएं 

अनेक नियम 

अनेक प्रथाएं

इनसे निकल नहीं  पाती

घुमती रहती हूँ उसी में

बाहर जा नहीं पाती

मैंने कही भी नहीं

खुले  रखे हैं दरवाजे

डाल रखे हैं दरवाजो पे

बड़े बड़े ताले

खो बैठी हूँ उनकी चाभियाँ

नहीं ढूंढने जाती हूँ उन्हें

सोच रखे हैं कई बहाने

बाहरी हवाएं नहीं आती

मौसम भी नहीं बदलते

सूरज की किरणें  भी

लौट जाती है टकराकर

दो पल खुश हो जाती हूँ

अपने इंतजामात पर

पर अगले पल ही छा जाता है

घनघोर अँधेरा

मुश्किल होता है

ये जानना

दिन है या रात हो गयी है

सच है या

है कोई मायाजाल 

Views: 764

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ajay Singh on May 26, 2012 at 6:07pm

really nice...........

Comment by Sarita Sinha on May 8, 2012 at 7:48pm

स्नेही महिमा जी, मन की उहापोह व अंतर्द्वंद  को दर्शाती सफल रचना.....बधाई...मुझे आने में देर हो गयी..sorry

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on May 7, 2012 at 1:52pm

मैंने कही भी नहीं
खुले रखे हैं दरवाजे
डाल रखे हैं दरवाजो पे
बड़े बड़े ताले
खो बठी हूँ उनकी चाभियाँ
नहीं ढूंढने जाती हूँ उन्हें
सोच रखे हैं कई बहाने
महिमा जी सुन्दर और गहन भाव लिए रचना ..काश ये ताले टूट जाएँ अँधेरा न छाये सब कुछ सुहाना हो रौशनी बिखरे मानव खुद पर नियंत्रण रखे तो आनंद और आये
जय श्री राधे
भ्रमर ५

Comment by MAHIMA SHREE on May 7, 2012 at 12:46pm
आदरणीय सौरभ सर ,
सादर नमस्कार , आपने समय दिया , पढ़ा , आपके सकरात्मक प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से आभारी हूँ ,
बहुत-२ धन्यवाद

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 5, 2012 at 9:02pm

आत्ममुग्धता की विवेचना करती एक सशक्त रचना के लिये आपको हार्दिक बधाई, महिमा जी.

Comment by MAHIMA SHREE on May 5, 2012 at 2:48pm
वाहिद जी नमस्कार ,
आपके बहुमूल्य प्रतिक्रया के लिए तहे दिल से आभारी हूँ . बहुत -२ धन्यवाद आपका
Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on May 5, 2012 at 12:37pm

आपका मायाजाल है तो यथार्थपरक क्यूंकि हम सभी अपने अंदर कुछ ऐसे नियम बना लिए हैं ऐसी धारणाएं पाल ली हैं कि उन्हीं में बंधे रह जाते हैं| फिर भी इसमें रहस्यवाद की पूरी झलक मिल रही है| उत्कृष्ट काव्य की प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें महिमा जी!

Comment by MAHIMA SHREE on May 5, 2012 at 12:22pm
आदरणीय अविनाश जी , कविता को पसंद करने के लिए आभारी हूँ
बहुत-२ धन्यवाद आपका /
Comment by AVINASH S BAGDE on May 4, 2012 at 10:35am

मैंने कही भी नहीं

खुले  रखे हैं दरवाजे

डाल रखे हैं दरवाजो पे

बड़े बड़े ताले

खो बैठी हूँ उनकी चाभियाँ

नहीं ढूंढने जाती हूँ उन्हें


sach me..

सच है या

है कोई मायाजाल  ...wah! Maheema ji.

Comment by MAHIMA SHREE on May 3, 2012 at 3:07pm
आदरणीय लक्ष्मण सर , नमस्कार
सहमत हूँ आपसे अगर हम अपने संकुचित दायरे से बाहर निकल आने में सफल हो जाए तो देव तुल्य हो जायेगे .
आपका हार्दिक धन्यवाद .. स्नेह बनाये रखे

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"दोहा अष्टक***हर पथ जब आसान हो, क्या जीवन संघर्ष।लड़-भिड़कर ही कष्ट से, मिलता है उत्कर्ष।।*सहनशील बन…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"सादर अभिवादन।"
1 hour ago
Sushil Sarna posted blog posts
yesterday
सतविन्द्र कुमार राणा posted a blog post

जमा है धुंध का बादल

  चला क्या आज दुनिया में बताने को वही आया जमा है धुंध का बादल हटाने को वही आयाजरा सोचो कभी झगड़े भला…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
yesterday
आशीष यादव posted a blog post

जाने तुमको क्या क्या कहता

तेरी बात अगर छिड़ जातीजाने तुमको क्या क्या कहतासूरज चंदा तारे उपवनझील समंदर दरिया कहताकहता तेरे…See More
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . रोटी
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post एक बूँद
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर रचना हुई है । हार्दिक बधाई।"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . रोटी
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई।"
Jan 4
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . विविध
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर "
Jan 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . विरह
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
Jan 2

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service