For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पुरखों के कुँए को ही दुनिया समझना
कूप मंडूकता है

कुँए को अपना घर समझना
पाँवों में पड़ी बेड़ियाँ हैं

कुँए की दीवारों को अभेद्य समझना
खुद को खुद की नज़रों में
दुनिया का विजेता साबित करने की कोशिश है

खुद को विश्व विजयी समझना
चुनौतियों से हारकर आलस्य का जहर पीना है

खुद को कूप मंडूक समझना
बाहर की रोशनी का अहसास है

कुँए की दीवारों के बाहर दुनिया की कल्पना
कुँए से बाहर जाने वाली सुरंग है

दुनिया के बाहर दुनिया की कल्पना
कुँए से बाहर जाने वाली सीढ़ी है

कुँए की दीवारों पर प्रश्नचिह्न बनाना
कुँए को पाटने वाली मिट्टी है

हम सब कूप मंडूक हैं
फर्क सिर्फ इतना है
कि किसके पास कितनी रोशनी, कितनी सुरंगें
कितनी सीढ़ियाँ और कितनी मिट्टी है

Views: 1766

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 6, 2012 at 9:13pm

प्रदीप जी बहुत बहुत शुक्रिया इस स्नेह के लिए

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 5, 2012 at 5:04pm

हम सब कूप मंडूक हैं
फर्क सिर्फ इतना है
कि किसके पास कितनी रोशनी, कितनी सुरंगें
कितनी सीढ़ियाँ और कितनी मिट्टी है

bahut badhiya kathan aapka. badhai, sir ji. 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 5, 2012 at 12:19am

आशीष जी, सौरभ जी, सीमा जी, सतीश जी, अविनाश जी, राजेश कुमारी जी एवं महिमा जी रचना को इतना प्यार देने  के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद।

Comment by MAHIMA SHREE on May 4, 2012 at 5:33pm
दुनिया के बाहर दुनिया की कल्पना
कुँए से बाहर जाने वाली सीढ़ी है

कुँए की दीवारों पर प्रश्नचिह्न बनाना
कुँए को पाटने वाली मिट्टी है..आदरणीय धर्मेन्द्र सर ,
हम कूप मडुक की बधाई स्वीकार करें :)

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 4, 2012 at 11:15am

 मस्तिष्क कि तंत्रिकाओं को जगा देने वाली कविता |

Comment by AVINASH S BAGDE on May 4, 2012 at 10:45am

खुद को कूप मंडूक समझना

बाहर की रोशनी का अहसास है



कुँए की दीवारों के बाहर दुनिया की कल्पना

कुँए से बाहर जाने वाली सुरंग है


हम सब कूप मंडूक हैं
फर्क सिर्फ इतना है
कि किसके पास कितनी रोशनी, कितनी सुरंगें
कितनी सीढ़ियाँ और कितनी मिट्टी है....धर्मेन्द्र कुमार सिंह ...behad prabhavi rachana...sadhuwad.

Comment by satish mapatpuri on May 4, 2012 at 3:48am

हम सब कूप मंडूक हैं

 फर्क सिर्फ इतना है

कि किसके पास कितनी रोशनी, कितनी सुरंगें

 कितनी सीढ़ियाँ और कितनी मिट्टी है     

अहो नाथ अब नहीं कुछ  बाकी ........... सब तो कह दिया हुज़ूर ........ तो फिर बधाई स्वीकार कीजिये

 

      


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 4, 2012 at 12:09am

कविता भाषण की तरह होती
या किसी निबंध की तरह
या फिर,
अनायास प्रस्फुटित हुए ज्ञान की तरह.. .
एक बार हो गयी तो होती चली जाती
और समस्त को समेटे अपने उपसंहार में
सायास समाप्त होती .. .
कविता के काश पंख न होते
उड़ान न होती.
निठल्ली पड़ी होती कुओं में.. मोरी में..  किसी गब्दू मेढक की तरह.. ढापुस-ढापुस टर्राती हुई.. .

और हम उसके गलफड़ों के गुब्बारों से निकले सुर पर स्वर न साधते.

 

भाई धर्मेन्द्र जी, आपकी रचनाएँ इतनी इन्डक्टिंग क्यों होती हैं ? ..  हृदय से बधाई.

Comment by आशीष यादव on May 3, 2012 at 11:03pm

bilkul sahi vichaaron me kavita likhi hai aapne.

badhai swikaarein.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service