है मरना डूब के मेरा मुकद्दर भूल जाता हूँ
तेरी आँखों में भी है एक सागर भूल जाता हूँ
ये दफ़्तर जादुई है या मेरी कुर्सी तिलिस्मी है
मैं हूँ जनता का एक अदना सा नौकर भूल जाता हूँ
हमारे प्यार में इतना तो नश्शा अब भी बाकी है
पहुँचकर घर के दरवाजे पे दफ़्तर भूल जाता हूँ
तुझे भी भूल जाऊँ ऐ ख़ुदा तो माफ़ कर देना
मैं सब कुछ तोतली आवाज़ सुनकर भूल जाता हूँ
न जी सकता हूँ तेरे बिन, न मरने दे तेरी आदत
दवा हो या जहर दोनों मैं रखकर भूल जाता हूँ
Comment
बहुत बहुत शुक्रिया राणा भाई
बहुत खूब धर्मेन्द्र भैया
सारे शेर कमाल के है..कई दिनों बाद नगीना हाथ लगा है| ढेर सारी दाद कबूलिये|
वीनस जी, राजेश कुमारी जी, बागी जी, प्रदीप जी, सौरभ जी, संदीप जी, महिमा जी एवं वंदना जी इस असीम प्यार एवं उत्साहवर्द्धन के लिए आप सबका हृदय से धन्यवाद
आदरणीय धर्मेन्द्र जी,
वाह-वाह, बहुत ख़ूब, क्या बात है!! इससे ज़्यादा कुछ कहना मेरे वश में नहीं है| साभार,
वाह भाई वीनस जी.. . :-)))))
यह भी चस्पाँ कर देना था .. और परियोजना पूरी हुई.. हा हा हा हा हा हा ...................
खैर मज़ाक अलग .. आपका अंदाज़ प्यारा लगा .. मैं भी अपनाऊँगा.
लीजिये इस ग़ज़ल को मैं अभी ओबीओ पर देख पा रहा हूँ. अच्छा हुआ कि यह यहाँ दिख गयी. वर्ना इन्हीं मिसरों पर अन्य सामाजिक पटल पर वाह-वाह करने के क्रम में मैं खुद में खौल रहा था. :-))))))
बहुत बहुत बधाई कह चुका हूँ.
ये दफ़्तर जादुई है या मेरी कुर्सी तिलिस्मी है
मैं हूँ जनता का एक अदना सा नौकर भूल जाता हूँ .... इस शे’र की तासीर पर हज़ार मुबारकें.. ..
तुझे भी भूल जाऊँ ऐ ख़ुदा तो माफ़ कर देना
मैं सब कुछ तोतली आवाज़ सुनकर भूल जाता हूँ
bahut sundar gajal. bahut sundar andaj sir ji badhai. aanand aa gaya.
हमारे प्यार में इतना तो नश्शा अब भी बाकी है
पहुँचकर घर के दरवाजे पे दफ़्तर भूल जाता हूँ
वाह वाह, जबरदस्त, बहुत ही उम्दा ख्याल धर्मेन्द्र जी, सभी शेर बहुत ही प्यारे लगे, कुल मिलाकर एक शानदार ग़ज़ल, दाद कुबूल करें |
वाह धर्मेन्द्र जी अपनी आदत को खूबसूरत ग़ज़ल की शक्ल दे डाली आपने इन खूबसूरत आदतों और खूबसूरत ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई |
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