For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बात इतनी बढ़ी के कहर हो गयी;

हमको बचपन में क़ैदे उमर हो गयी;

*

बात कानों में घुलती शहद की तरह,

रात ही रात में क्यूँ ज़हर हो गयी;

*

कब ये चंदा ढला, कब ये सूरज उगा,

रात आँखों में गुज़री, सहर हो गयी;

*

ज़ेर साया थी दुनिया ये मेरे मगर,

जाने कब ये इधर से उधर हो गयी;

*

मुझको इससे अधिक क्या ख़ुशी होगी अब,

जो लिखी थी ग़ज़ल बा-बहर हो गयी;        ---------------- :-)

*

अब तलक तो खुदा को न सजदा किया,

ये दुआ मेरी कैसे असर हो गयी;

*

बात बनते-बनाते चली आई पर,

आज इस मोड़ पर कुछ कसर हो गयी;

Views: 716

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on May 5, 2012 at 8:20pm

आदरणीय कुशवाहा जी,

आपका स्नेह और सम्मान सदैव ही बेहतर करने को प्रेरित करता है| आपका हार्दिक आभार!

Comment by Abhinav Arun on May 5, 2012 at 8:05pm

वाह वाहिद जी ग़ज़ल का हर शेर कामयाब जिंदाबाद कमाल बधाई आपको !!

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 5, 2012 at 4:52pm

स्नेही संदीप  जी, सादर 

मैं आज ye soch raha tha की aapke शेरों को गुणवत्ता के आधार पर (भाव के आधार पर, takniki का ज्ञान मुझे नहीं है) krambaddh karunga. पर सरे sher nambar निकले. बधाई. 
Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on May 5, 2012 at 11:16am

आदरणीय अग्रज योगराज जी,

अभी सीख रहा हूँ आप के कुशल दिशा निर्देशन में शीघ्र ही और निखार आ जाएगा ऐसा मुझे विश्वास है| सादर,


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on May 5, 2012 at 11:10am

भाई संदीप द्विवेदी जी, बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही है - वाह. लेकिन भाई, मतले में "कहर" के साथ "उमर" काफिये की बंदिश वज्न के हिसाब से दुरुस्त नहीं है, ज़रा दोबारा नज़र-ए-सानी कर लें. बहरहाल इस बढ़िया कलाम के लिए मेरी बधाई स्वीकारें.

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on May 5, 2012 at 10:55am

आदरणीय सीमा जी, राजेश जी, महिमा जी एवं आदरणीय अविनाश जी, सौरभ जी एवं आशीष जी! मेरी हौसलाअफ़ज़ाई के लिए आप सभी विद्वतजनों के प्रति हार्दिक आभार प्रकट करता हूँ| :-))


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 4, 2012 at 11:05pm

भाई संदीप वाहिद जी, आपकी इस ग़ज़ल पर आपको दिल से मुबारकबाद.

इन शेर के लिये विशेष बधाई कुबूल कीजिये.

बात कानों में घुलती शहद की तरह,
रात ही रात में क्यूँ ज़हर हो गयी;

कब ये चंदा ढला, कब ये सूरज उगा,
रात आँखों में गुज़री, सहर हो गयी;

और .. जो लिखी थी ग़ज़ल बा-बह्र हो गयी ... . आपने सही कहा है कि बा-बह्र मिसरों का हो जाना कितना आह्लादकारी हुआ करता है. वर्ना इसके बिना मानों अच्छे-खासे सफ़री को खड़खड़िया गाड़ी पर बिठा देना. .. :-))))

Comment by आशीष यादव on May 4, 2012 at 6:39pm
बहुत अच्छी गजल। सारे शेर बहुत अच्छे लगे।
Comment by MAHIMA SHREE on May 4, 2012 at 4:31pm
अब तलक तो खुदा को न सजदा किया,

ये दुआ मेरी कैसे असर हो गयी;
बहुत बढ़िया वाहिद जी .. बधाई स्वीकार करें
Comment by AVINASH S BAGDE on May 4, 2012 at 10:38am

कब ये चंदा ढला, कब ये सूरज उगा,

रात आँखों में गुज़री, सहर हो गयी;

संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' ji....wah!

ज़ेर साया थी दुनिया ये मेरे मगर,

जाने कब ये इधर से उधर हो गयी;


कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post भादों की बारिश
"यह लघु कविता नहींहै। हाँ, क्षणिका हो सकती थी, जो नहीं हो पाई !"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

भादों की बारिश

भादों की बारिश(लघु कविता)***************लाँघ कर पर्वतमालाएं पार करसागर की सर्पीली लहरेंमैदानों में…See More
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान ।मुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।। छोटी-छोटी बात पर, होने लगे…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय चेतन प्रकाश भाई ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक …"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सुशील भाई  गज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिए आपका आभार "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
Monday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"विगत दो माह से डबलिन में हूं जहां समय साढ़े चार घंटा पीछे है। अन्यत्र व्यस्तताओं के कारण अभी अभी…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"प्रयास  अच्छा रहा, और बेहतर हो सकता था, ऐसा आदरणीय श्री तिलक  राज कपूर साहब  बता ही…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छा  प्रयास रहा आप का किन्तु कपूर साहब के विस्तृत इस्लाह के बाद  कुछ  कहने योग्य…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"सराहनीय प्रयास रहा आपका, मुझे ग़ज़ल अच्छी लगी, स्वाभाविक है, कपूर साहब की इस्लाह के बाद  और…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आपका धन्यवाद,  आदरणीय भाई लक्ष्मण धानी मुसाफिर साहब  !"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"साधुवाद,  आपको सु श्री रिचा यादव जी !"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service