बात इतनी बढ़ी के कहर हो गयी;
हमको बचपन में क़ैदे उमर हो गयी;
*
बात कानों में घुलती शहद की तरह,
रात ही रात में क्यूँ ज़हर हो गयी;
*
कब ये चंदा ढला, कब ये सूरज उगा,
रात आँखों में गुज़री, सहर हो गयी;
*
ज़ेर साया थी दुनिया ये मेरे मगर,
जाने कब ये इधर से उधर हो गयी;
*
मुझको इससे अधिक क्या ख़ुशी होगी अब,
जो लिखी थी ग़ज़ल बा-बहर हो गयी; ---------------- :-)
*
अब तलक तो खुदा को न सजदा किया,
ये दुआ मेरी कैसे असर हो गयी;
*
बात बनते-बनाते चली आई पर,
आज इस मोड़ पर कुछ कसर हो गयी;
Comment
आदरणीय कुशवाहा जी,
आपका स्नेह और सम्मान सदैव ही बेहतर करने को प्रेरित करता है| आपका हार्दिक आभार!
वाह वाहिद जी ग़ज़ल का हर शेर कामयाब जिंदाबाद कमाल बधाई आपको !!
स्नेही संदीप जी, सादर
आदरणीय अग्रज योगराज जी,
अभी सीख रहा हूँ आप के कुशल दिशा निर्देशन में शीघ्र ही और निखार आ जाएगा ऐसा मुझे विश्वास है| सादर,
भाई संदीप द्विवेदी जी, बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही है - वाह. लेकिन भाई, मतले में "कहर" के साथ "उमर" काफिये की बंदिश वज्न के हिसाब से दुरुस्त नहीं है, ज़रा दोबारा नज़र-ए-सानी कर लें. बहरहाल इस बढ़िया कलाम के लिए मेरी बधाई स्वीकारें.
आदरणीय सीमा जी, राजेश जी, महिमा जी एवं आदरणीय अविनाश जी, सौरभ जी एवं आशीष जी! मेरी हौसलाअफ़ज़ाई के लिए आप सभी विद्वतजनों के प्रति हार्दिक आभार प्रकट करता हूँ| :-))
भाई संदीप वाहिद जी, आपकी इस ग़ज़ल पर आपको दिल से मुबारकबाद.
इन शेर के लिये विशेष बधाई कुबूल कीजिये.
बात कानों में घुलती शहद की तरह,
रात ही रात में क्यूँ ज़हर हो गयी;
कब ये चंदा ढला, कब ये सूरज उगा,
रात आँखों में गुज़री, सहर हो गयी;
और .. जो लिखी थी ग़ज़ल बा-बह्र हो गयी ... . आपने सही कहा है कि बा-बह्र मिसरों का हो जाना कितना आह्लादकारी हुआ करता है. वर्ना इसके बिना मानों अच्छे-खासे सफ़री को खड़खड़िया गाड़ी पर बिठा देना. .. :-))))
कब ये चंदा ढला, कब ये सूरज उगा,
रात आँखों में गुज़री, सहर हो गयी;
संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' ji....wah!
ज़ेर साया थी दुनिया ये मेरे मगर,
जाने कब ये इधर से उधर हो गयी;
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online