|| माँ शारदे स्तुति "घनाक्षरी छंद" ||
नव नव छंद लिखूं, छंद में आनंद लिखूं |
ऐसा वरदान देना, मेरी माता शारदे ||
जब भी श्रृंगार लिखूं , अपने विचार लिखूं |
मान मेरा बना रहे , बुद्धि के भण्डार दे ||
वीर रस जब आये, पढ़ खून खौल जाए |
सोये लाल जाग जाये, रव में अंगार दे ||
मैं खडा हूँ द्वारे तेरे, खोल दे तू भाग्य मेरे |
मुझ चंचल को माता, अपना तू प्यार दे ||
संदीप पटेल "दीप"
Comment
बहुत ही सुंदर ... संदीप जी ... छा गए आप :)
जब भी श्रृंगार लिखूं , अपने विचार लिखूं |
मान मेरा बना रहे , बुद्धि के भण्डार दे ||
वीर रस जब आये, पढ़ खून खौल जाए |
सोये लाल जाग जाये, रव में अंगार दे ||
प्रिय संदीप जी बहुत सुन्दर माँ शारदे वर दें ऐसा ही ...माननीय बागी जी का सुझाव देखिएगा ..आभार ....भ्रमर ५
खड़ा हूँ मैं द्वार तेरे, खोल दे तू भाग्य मेरे |
मुझ चंचल को माता, अपना तू प्यार दे ||
अब जरा पढ़िए संदीप भाई , प्रवाह में अटकाव लग रहा था,
बहुत ही खुबसूरत कवित्त की प्रस्तुति है संदीप जी , आनंद आ गया , बधाई स्वीकार करें |
आदरणीय संदीप जी, सादर
मैं खडा हूँ द्वारे तेरे, खोल दे तू भाग्य मेरे |
मुझ चंचल को माता, अपना तू प्यार दे ||
bahut sundr sandeep ji ,badhai.
बहुत सुन्दर माँ शारदे की स्तुति माँ शारदे का हाथ हमेशा आपके सिर पर हो यही मेरी शुभकामना है |
नव नव छंद लिखूं, छंद में आनंद लिखूं |
ऐसा वरदान देना, मेरी माता शारदे ||
जब भी श्रृंगार लिखूं , अपने विचार लिखूं |
मान मेरा बना रहे , बुद्धि के भण्डार दे ||
बहुत सुन्दर आराधना श्री "दीप जी " ! बहुत अच्छी रचना
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