चश्मे तो हमने राह में पाये हैं बेशुमार
तेरी ही तिश्नगी में आये हैं बार- बार
प्यार से बिठाया और खुशियाँ लूट ली
धोखे यूँ जिंदगी में खाये हैं कई हजार
सीमाएं मेरे दर्द की वो नाप के गए
अश्क जब काँधे पे बहाये हैं ज़ार-ज़ार
बता गमजदा दिल अब कैसे ढकें बदन
खुशियों के पैरहन कर लाये हैं तार-तार
वादियों में बुलबुलें अब चहकती नहीं
जब दर्द के गुबार ने तडपाये हैं चिनार
कैसे सुकून पाये 'राज' इस जहान में
नफरतों की आग ने सुखाये हैं आबशार
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बता गमजदा दिल अब कैसे ढकें बदन
खुशियों के पैरहन कर लाये हैं तार-तार
कैसे सुकून पाये 'राज' इस जहान में
नफरतों की आग ने सुखाये हैं आबशार
वाह आदरणीया राजेश दी .. बहुत गहरी बात .. बधाई आपको
प्यार से बिठाया और खुशियाँ लूट ली
धोखे यूँ जिंदगी में खाये हैं कई हजार
सीमाएं मेरे दर्द की वो नाप के गए
अश्क जब काँधे पे बहाये हैं ज़ार-ज़ार
आदरणीया राजेश कुमारी जी ...बहुत सुन्दर ...लेकिन फिर भी धोखा ही धोखा ....जमाना ही .... जय श्री राधे
प्यार से बिठाया और खुशियाँ लूट ली
धोखे यूँ जिंदगी में खाये हैं कई हजार
सीमाएं मेरे दर्द की वो नाप के गए
अश्क जब काँधे पे बहाये हैं ज़ार-ज़ार
आदरणीया राजेश कुमारी जी ...बहुत सुन्दर ...लेकिन फिर भी धोखा ही धोखा ....जमाना ही .... जय श्री राधे
बता गमजदा दिल अब कैसे ढकें बदन , खुशियों के पैरहन कर लाये हैं तार-तार॥ बहुत सुंदर रचना राजेश कुमारी जी ! सुंदर और भाव प्रधान रचना के लिए बधाइयाँ स्वीकार करें!!
हार्दिक आभार अरुण जी आपकी बात का अगली बार पक्का ध्यान रखूंगी कठिन शब्द के अर्थ जरूर लिखूंगी | इस बार दो या तीन ही शब्द कठिन हो सकते हैं सो अर्थ आपकी रिप्लाई बोक्स में ही लिख रही हूँ तिश्नगी =प्यास ,पैरहन =लिबास ,आबशार =पानी के झरने
आदरणीया राजेश कुमारी जी !! बहुत गहरे भाव की रचना | सुन्दर और सार्थक , हार्दिक बधाई आपको !! .. अनुज होने नाते एक बात - अक्सर मुझे भी उर्दू अरबी के शब्द लुभाते हैं पर मैंने महसूस किया है कि बोलचाल की भाषा में कही गयी रचना का सहज सरल प्रवाह उसे स्थायित्व देता है | कुछ शब्द कठिन लग रहे हैं उनका हिंदी अर्थ देना अच्छा रहेगा |
बहुत बहुत हार्दिक बधाई आशीष जी
भावों को बहुत खूबसूरती से पिरोया है अल्फाजों मे, और अल्फाजों को सुन्दर शिल्प की पैरहन दी है।
बधाई स्वीकारें
अविनाश जी आप सही कह रहे हैं न जाने इन दो शब्दों में कैसे गड़बड़ हो गई लिखा तो ठीक ही था ये र मात्र में कहाँ से आ गया
वादियों में बुलबुलें अब चहकती नहीं
जब दर्द के गुबार ने तडपाये हैं चिनार ....Rajesh kumari mam....shandar mukammal gazal....thodi printing ki galtiya dikh rahi hai.
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