हाँ वो मेरी बेटी है
जो बगल में लेटी है
मेरा प्यार है वो
जीवन की बहार है वो
हमारे प्यार की निशानी
एक अनकही कहानी
खिलखिलाहट उसकी
दीवाना करती है
जाएगी दूजे घर
एक डर भरती है
खिली इस बगिया में
वो उपवन कैसा होगा
कली मासूम सी
काँटों मैं घिरी होगी
दूँगी वो शिक्षा
होगी रात तो
कभी सहर होगी
दुआ बाबुल की है
सुखी संसार होगा
पति का घर उसका
सुन्दर उपहार होगा
इस कुल उस कुल
अटूट बंधन होगा
प्रेम प्रतिष्ठा से
मान बढ़ाएगी
माँ वधू बेटी बन
जग रीति निभाएगी
हाँ वो मेरी बेटी है
Comment
एक सुन्दर रचना। बेटी ही दो घरों को जोड़ती है।
अच्छी रचना पर बधाई स्वीकार कीजिए
आदरणीय कुशवाहा जी, नमस्कार,
अंत्यंत सराहनीय प्रस्तुति ...!!!!
दुआ बाबुल की है
सुखी संसार होगा
पति का घर उसका
सुन्दर उपहार होगा
इस कुल उस कुल
अटूट बंधन होगा
प्रेम प्रतिष्ठा से
मान बढ़ाएगी
माँ वधू बेटी बन
जग रीति निभाएगी
हाँ वो मेरी बेटी है
आदरणीय प्रदीप जी बहुत सुन्दर ..काश माँ पिता और इस समाज के मुंह से ये उदगार निकलें
इस कुल उस कुल
अटूट बंधन होगा
प्रेम प्रतिष्ठा से
मान बढ़ाएगी
माँ वधू बेटी बन
जग रीति निभाएगी
हाँ वो मेरी बेटी है BAHUT HI HRIDAY-SPARSHI HAI Pradeep bhai...wah!
आपकी रचना दिल में घर कर गई बहुत प्यारी प्रस्तुति बधाई
दुआ बाबुल की है
सुखी संसार होगा
पति का घर उसका
सुन्दर उपहार होगा
इस कुल उस कुल
अटूट बंधन होगा
प्रेम प्रतिष्ठा से
मान बढ़ाएगी
माँ वधू बेटी बन
जग रीति निभाएगी
हाँ वो मेरी बेटी है
बहुत ही सुन्दर रचना आदरणीय श्री प्रदीप कुशवाहा जी ! बेटी बड़ी अनमोल होती हैं ! बहुत सुन्दर रचना !
प्रदीप जी बहुत सुंदर अभिव्यक्ति । बाबुल का प्यार ही तो है जो बेटी के साथ हमेशा रहता है। बहुत बहुत बधाई !
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