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बाल श्रम (लघु कथा)

कितने ही प्रतिष्ठित समाजसेवी संगठनों में उच्च पद-धारिका तथा सुविख्यात समाज सेविका निवेदिता आज भी बाल श्रम पर कई जगह ज़ोरदार भाषण देकर घर लौटीं. कई-कई कार्यक्रमों में भाग लेने के उपरान्त वह काफी थक चुकी थी. पर्स और फाइल को बेतरतीब मेज पर फेंकते हुए निढाल सोफे पर पसर गई.  झबरे बालों वाला प्यारा सा पप्पी तपाक से गोद में कूद आता है.

"रमिया ! पहले एक ग्लास पानी ला ... फिर एक गर्म गर्म चाय.........." 

दस-बारह बरस की रमिया भागती हुई पानी लिये सामने चुपचाप खड़ी हो जाती है.

"ये बता री, आज पप्पी को टहलाया था?"

"माफ़ कर दो मेम साब, सारा दिन बर्तन मांजने, घर की सफाई और कपडे धोने में निकल गया इस लिए आज पप्पी को टहला नहीं पाई...."

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Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 15, 2012 at 5:10pm

धन्यवाद आदरणीय अविनाश जी, सादर 

Comment by AVINASH S BAGDE on June 15, 2012 at 3:11pm

wah!bal-shram ka sateek chitran hua hai...Pradeep sir ji...ye shokantika hai us samaj ki jaha ye sab dekhate huye bhi rah rahe hai

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 15, 2012 at 2:27pm

प्रिय कुमार जी, सस्नेह 

धन्यवाद. 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 15, 2012 at 2:26pm

आदरणीय अलबेला जी, सादर 

आपके समर्थन से सत्य कहने हेतु मुझे बल मिला है. आभारी हूँ आपका. 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 15, 2012 at 2:24pm

आदरणीय स्नेही अनुज श्री योगराज जी, ससम्मान 

सौभाग्य है मेरा इस मंच पर कई विधाओं को सीख रहा हूँ. आप जैसे गुणीजन कोयले को तराश के हीरा  बना रहे हैं. कोहीनूर न बन सका कोई बात नही अमेरिकन हीरा ही काफी है मेरे लिए. सबसे बड़ी प्रसन्नता मुझे इस बात की है आपके स्नेहिल स्पर्श से और जीने की ललक बढ़ गयी है. आभार है आपका. 

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on June 15, 2012 at 1:55pm
बहुत सही व्यंग किया आपने कुशवाहा सर। आजकल ऐसे समाजसेवकोँ की कोई कमी नहीँ है।
Comment by Albela Khatri on June 15, 2012 at 1:54pm

सम्मान्य प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा जी,
लघु कथा बाल श्रम  बाँच कर  यही लगा कि आपने  किसी  पैने हथियार से चीर-फाड़ कर दी है  उन  भाषणजीवी  दोहरे चरित्रों की  जो ख़ुद तो पी कर आते हैं और मंच से  मदिरा  का विरोध करते हैं

अपनी पिछली  टिप्पणी में भी मैंने यही कहा कि बच्ची के जवाब की  एक पंक्ति ने  पूरी पोल खोल कर रख दी

आपकी लेखनी और आपकी सोच को अलबेला खत्री का  विनम्र प्रणाम


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on June 15, 2012 at 1:08pm

समाज के दोमुँहेपन पर बेहद करारा प्रहर किया है अग्रज प्रदीप सिंह कुशवाहा जी. इस रोचक और सारगर्भित लघुकथा पर आपको हार्दिक बधाई.

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 15, 2012 at 12:30pm

आदरणीय अलबेला जी , सादर अभिवादन 

आपका कार्य क्षेत्र बड़ा है . काफी अनुभव भी हो गया होगा. शायद कई जगह इसे देखा भी होगा. यदि हाँ तो हाँ करने का कष्ट  करें. आभार 

Comment by Albela Khatri on June 15, 2012 at 12:26pm

hathi ke daant khaane ke aur, dikhaane ke aur........

aapne dono daant  saamne rakh diye ...waah waah Pradeep ji...

दस-बारह बरस की रमिया भागती हुई पानी लिये सामने चुपचाप खड़ी हो जाती है.

"ये बता री, आज पप्पी को टहलाया था?"

"माफ़ कर दो मेम साब, सारा दिन बर्तन मांजने, घर की सफाई और कपडे धोने में निकल गया इस लिए आज पप्पी को टहला नहीं पाई...."

______jai ho !

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