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दिख रही वो ज़िन्दगानी और है;
मुझ पे जो बीती कहानी और है;
ख़ाक कर डाला मगर हम पर अभी,
इक क़यामत उसको ढानी और है;
कम न थीं पहले ही तेरी हरकतें,
और अब ये बदज़ुबानी और है;
दांव सारे आज़मा हम हैं चुके,
आख़िरी बाज़ी लगानी और है;
कश्तियाँ मझधार से लड़ आईं पर,
इक लहर आती तूफ़ानी और है;
भर गया जी इस जहाँ से अब मुझे,
इक नई दुनिया बनानी और है;
वो जवां थे मर मिटे इस मुल्क पर,
आज की ये नौजवानी और है;
ये सियासत का है मरकज़ आज भी,
देश की पर राजधानी और है;
मशवरे देता रहे 'वाहिद तमाम,
अपने जी में हमने ठानी और है;
Comment
प्रोत्साहन हेतु आभार आदरणीया रेखा जी!!
सादर धन्यवाद दीप्ति जी..
अरुण जी इस मुकम्मल ग़ज़ल के लिए बधाई
कश्तियाँ मझधार से लड़ आईं पर,
इक लहर आती तूफ़ानी और है;
भर गया जी इस जहाँ से अब मुझे,
इक नई दुनिया बनानी और है;बहुत बहुत सुन्दर अल्फ़ाज हर शेर लाजबाब
वाह संदीप भाई एक एक लाईन बहुमूल्य है बाग बाग कर दिया आपने
संदीपभाई, दिल खुश कर दिया आपने.
इन अश’आरों पर विशेष दाद कुबूल कीजिये .. .
कम न थीं पहले ही तेरी हरकतें,
और अब ये बदज़ुबानी और है;
वो जवां थे मर मिटे इस मुल्क पर,
आज की ये नौजवानी और है;
ये सियासत का है मरकज़ आज भी,
देश की पर राजधानी और है;
बहुत खूब !
भर गया जी इस जहाँ से अब मुझे,
इक नई दुनिया बनानी और है;
वो जवां थे मर मिटे इस मुल्क पर,
आज की ये नौजवानी और है;
दांव सारे आज़मा हम हैं चुके,
आख़िरी बाज़ी लगानी और है बहुत बढ़िया संदीप जी ,बधाई
वाह बहुत खूब
बधाई आपको
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