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दिख रही वो ज़िन्दगानी और है;

मुझ पे जो बीती कहानी और है;

ख़ाक कर डाला मगर हम पर अभी,

इक क़यामत उसको ढानी और है;

कम न थीं पहले ही तेरी हरकतें,

और अब ये बदज़ुबानी और है;

दांव सारे आज़मा हम हैं चुके,

आख़िरी बाज़ी लगानी और है;

कश्तियाँ मझधार से लड़ आईं पर,

इक लहर आती तूफ़ानी और है;

भर गया जी इस जहाँ से अब मुझे,

इक नई दुनिया बनानी और है;

वो जवां थे मर मिटे इस मुल्क पर,

आज की ये नौजवानी और है;

ये सियासत का है मरकज़ आज भी,

देश की पर राजधानी और है;

मशवरे देता रहे 'वाहिद तमाम,

अपने जी में हमने ठानी और है;

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Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on July 12, 2012 at 10:37am

प्रोत्साहन हेतु आभार आदरणीया रेखा जी!!

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on July 12, 2012 at 10:37am

सादर धन्यवाद दीप्ति जी..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 12, 2012 at 9:33am

अरुण जी इस मुकम्मल ग़ज़ल के लिए बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 12, 2012 at 9:30am

कश्तियाँ मझधार से लड़ आईं पर,

इक लहर आती तूफ़ानी और है;

भर गया जी इस जहाँ से अब मुझे,

इक नई दुनिया बनानी और है;बहुत बहुत सुन्दर अल्फ़ाज हर शेर लाजबाब 

Comment by UMASHANKER MISHRA on July 11, 2012 at 11:17pm

वाह संदीप भाई एक एक लाईन बहुमूल्य है बाग बाग कर दिया आपने


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 11, 2012 at 10:54pm

संदीपभाई, दिल खुश कर दिया आपने.

इन अश’आरों पर विशेष दाद कुबूल कीजिये .. .

कम न थीं पहले ही तेरी हरकतें,
और अब ये बदज़ुबानी और है;

वो जवां थे मर मिटे इस मुल्क पर,
आज की ये नौजवानी और है;

ये सियासत का है मरकज़ आज भी,
देश की पर राजधानी और है;

बहुत खूब !

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on July 11, 2012 at 10:18pm

भर गया जी इस जहाँ से अब मुझे,

इक नई दुनिया बनानी और है;

वो जवां थे मर मिटे इस मुल्क पर,

आज की ये नौजवानी और है;

प्रिय वाहिद काशी वासी भाई जी खूबसूरत ...कटाक्ष के साथ ..जिन्दगी को लहरों से लड़ते हौंसले देते हुए ...अच्छी रचना 
भ्रमर ५

 

Comment by Rekha Joshi on July 11, 2012 at 9:37pm

दांव सारे आज़मा हम हैं चुके,

आख़िरी बाज़ी लगानी और है बहुत बढ़िया संदीप जी ,बधाई 

Comment by deepti sharma on July 11, 2012 at 7:09pm

वाह बहुत खूब 

बधाई आपको 

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