मित्रों दोहों के रूप में कुछ अपने जीवन के अनुभव और विचार प्रस्तुत कर रहा हूँ अपने विचार अवश्य रखें प्रसन्नता होगी
==========दोहे =========
पीर पराई देख के , नैनन नीर बहाय
दया जीव पे जो करे, वो मानव कहलाय
सब धर्मों का एक ही, तीरथ भारत देश
सबको देता ये शरण, कैसा भी हो वेश
मोक्ष आखिरी लक्ष्य है, हर मानव का दीप
मोती पाना कठिन है, गहरे सागर सीप
दीप जलाओ ज्ञान का, मन से मन का मेल
बाती जिसमें शास्त्र की, रीतों का हो तेल
मधु पाता श्रम जो करे, उसको मिलता मान
श्रम ही उत्तम मार्ग है, श्रम का हो सम्मान
बादल बरसे हर बरस, फिर भी सूखा होय
संचय गुण जिसका नहीं, पटक पटक सिर रोय
ह्रदय द्वार को बंद कर, बाहर दीप जलाय
ब्रह्मा उसका क्या करे, कौन उसे समझाय
संदीप पटेल "दीप"
Comment
इन सुन्दर दोहों के लिए आपको हार्दिक बधाई संदीप जी
वाह भाई संदीप आपका ये सुफियानापन दोहों में सूफी संतो की आत्मा प्रवेश कर गई है...... जय हो ....बहुत सुन्दर
बधाई बधाई बधाई बधाई
आदरणीय आशीष जी, अलबेला सर जी, भ्रमर जी
आदरणीया रेखा जी , राजेश कुमारी जी , दीप्ति जी
आप सभी ने दोहे पसंद किये मेरा लिखना सफल हो गया
आपका अनुपम स्नेह मिला मेरे लेखन को इसके लिए आपका आभारी हूँ
ऐसे ही मार्गदर्शन और उत्साहवर्धन करते रहिये
सदीप जी
बहुत ही सुंदर दोहे भा गये बहुत बधाई
पीर पराई देख के , नैनन नीर बहाय
दया जीव पे जो करे, वो मानव कहलाय
मधु पाता श्रम जो करे, उसको मिलता मान
श्रम ही उत्तम मार्ग है, श्रम का हो सम्मान
प्रिय संदीप जी अति उत्तम ...ऐसा हो जाए तो जग बदल ही जाए ....प्यारी रचना ..दोहों में जान आ गयी
बहुत सुन्दर दोहे दीप जी एक से बढ़कर एक
गज़ब की दोहावली...........
अनुपम दोहावली
उत्तम दोहावली
बादल बरसे हर बरस, फिर भी सूखा होय
संचय गुण जिसका नहीं, पटक पटक सिर रोय
___वाह वाह संदीप पटेल दीप जी...बधाई !
कथ्य एवँ शिल्प, दोनो प्रकार से उत्तम दोहे।
बधाई स्वीकार करें।
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