तृष्णा की कोख से जन्मा
वासनाओं के साये में पला
एक मनोभाव है दुःख ;
सांसारिक माया से भ्रमित
षटरिपुओं से पराजित
अंतस की करुण पुकार है दुःख ;
स्वार्थ का प्रियतम
घृणा का सहचर
भोगलिप्सा की परछाई है दुःख ;
वैमनस्य का मूल्य
भेदभाव का परिणाम
आलस्य का पारितोषिक है दुःख ;
अधर्म से सिंचित
अमानवीय कृत्यों की
एक निशानी है दुःख ;
कलुषित मन की
कुटिल चालों का
सम्मानित अतिथि है दुःख ;
निरर्थक संशय से उपजी
मानसिक स्थिति का
एक नाम है दुःख |
Comment
आदरणीय सतीश मापतपुरी सर.......उत्साहवर्धन के लिए आपका दिल से आभार.......यूँ ही स्नेह बनाये रखियेगा........
आपका हार्दिक आभार आदरणीय अरुण निगम सर.........
आदरणीय अलबेला भैया.......आपका हार्दिक आभार........दुःख की वजह तो मनुष्य के अन्दर ही होती है......मनुष्य उसे पहचान नहीं पाता.....
वैमनस्य का मूल्य
भेदभाव का परिणाम
आलस्य का पारितोषिक है दुःख ;
दुःख को बहुत ही अच्छे से परिभाषित करती रचना के लिए गौरव जी बधाई स्वीकारें.
कलुषित मन की
कुटिल चालों का
सम्मानित अतिथि है दुःख ;
निरर्थक संशय से उपजी
मानसिक स्थिति का
एक नाम है दुःख |
kumar saab , kya khoob likha hai ! bahut khoob
निरर्थक संशय से उपजी
मानसिक स्थिति का
एक नाम है दुःख |,खूबसूरत रचना पर मेरी हादिक बधाई स्वीकार करें गौरव जी
सार्थक कविता के लिए बधाई कुमार गौरव अजितेंदुजी
बहुत सुन्दर विवेचना है
क्या बात है वाह वाह वाह
वैमनस्य का मूल्य
भेदभाव का परिणाम
आलस्य का पारितोषिक है दुःख ;
कुमार जी बहुत सुंदर कविता के माध्यम से आपने दुख और और उसके कारणों को परिभाषित किया है। बहुत बहुत बधाई !!!
बहुत सुंदर कुमार साहेब , दुःख को आपने जिस तरह से परिभाषित किया है ... वह काबिले तारीफ़ है . बधाई .
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