अरे ! कहाँ गई !
अभी तो यहीं थी !
लगता है कहीं गिर ही गई
इस आपाधापी में,
हो सकता है कुचल दी गई होगी
किन्हीं कदमों के तले,
या फिर उड़ा ले गया उसे
झोंका कोई हवा का ;
चाहे चुरा ले गया होगा चोर कोई,
लेकिन चुराएगा कौन !
चीज तो काफी पुरानी थी
फटी-चिटी, धूल-धूसरित,
बहुत संभव है फेंक दिया होगा
किसी ने बेकार समझ के
और ले गया होगा कोई
आउटडेटेड आदमी अपने
स्वभाव के झोपड़े में लगाने के लिए ;
कहीं कहानी लिखनेवाले
तो उठा नहीं ले गये !
कवियों का भी काम हो सकता है,
अन्यथा कोई वृद्ध ले गया होगा
अपने जमाने की शान को
लगा के कलेजे से,
बैठ के अकेले में साथ रोने के लिये
अपनी और उसकी दुर्दशा पर ;
खैर.......जो कुछ भी हो,
अब तो मिलने से ही रही
वो खोई हुई चीज
"मिठास रिश्तों की" |
Comment
बहुत ही सराहनीय प्रयास...!!!
गौरव जी आजकल तो रिश्तों में मिठास की जगह खटास ने ले ली है ,बढ़िया रचना ,बधाई
रिश्तों की मिठास को खोजने का ये सफ़र बहुत सुन्दर लगा, रचना में एक प्रवाह है जो अंत तक बांधे रखता है, इस हेतु हार्दिक बधाई... आदरणीय लक्ष्मण जी की बात से तो मैं भी सहमत हूँ...
कुमार जी नमस्कार
बहुत ही सुंदर मीठास भरी रचना.की प्रस्तुति ...........
फूल सिंह
भाई कुमार गौरव अजितेंदु जी कोई कवी तो नहीं ले गया होगा चुरा के मिठास रिश्तों की | ले भी गया होगा तो उकेर के रख गया होगा, देखो, सुन्दर रचना के लिए बधाई
bahut sundar pryaas hai aapka is tarah ki rachna me
ant tak bandhe rahe mithaas ki khoj me badhaai ho aapko
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