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लोग दोहरे मापदंड में जीते हैं बखूबी चित्रण किया कहानी में बधाई आपको
अग्रज लडीवाला जी, ओबीओ पर उदीयमान साहित्यकारों का उचित मार्गदर्शन करना हमारा मुख्य उद्देश्य रहा है. इसी कारण अनुज विन्ध्येश्वरी प्रसाद जी को अपनी बेबाक राय से अवगत करवाना अपना फ़र्ज़ समझा. आपको तो अपनी रचनायों पर दया ही आती होगी मुझे तो ओबीओ के साथ जुडने से पहले कही गई अपनी ग़ज़लों पर रोना आता है.
भाई विन्ध्येश्वरी जी, लघुकथा कहने का सद्प्रयास हुआ है. जिसके लिए आप बधाई के पात्र हैं. रचना अभी भी बहुत सारी कसावट मांग रही है. लघुता क्योंकि इस विधा की विशष्ट है अत: यह ज़रूरी हो जाता है कि इसमें एक भी शब्द फालतू न कहा जाये ताकि कहानी कसी हुई रहे. दरअसल, लघुकथा में जो कहा जाता है वह तो महत्वपूर्ण होता ही है, उस से भी ज्यादा महत्वपूर्ण होता है जो नहीं कहा गया हो. "जो नहीं कहा गया" को दो तरीके से समझा जा सकता है:
१. वह बात जिसको केवल इशारे में कहा गया हो.
२. वह बात जो अगर न ही/भी कही जाती तो बेहतर होता
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अब आपकी इसी लघुकथा की बात करते हैं, इसकी पहली पंक्ति देखिए:
//जब मैं बाजार से लौटकर आया तो देखा कि पड़ोसी के बच्चे मेरी खिड़की के पास खड़े हैं।//
आप बाज़ार से आए या कहीं और से यह बताने की आवाश्यकता नहीं थी, इतने से ही काम चल सकता था.
//पड़ोसियों के बच्चे मेरी खिड़की के पास खड़े हैं।//
//लगता है इन कमबख्तों ने खिड़की का शीशा तोड़ दिया,इनके बाप से वसूलता शीशे का दाम"-मैंने सोचा।
जब मैं खिड़की के पास पहुंचा तो देखा कि वास्तव में शीशा टूटा हुआ है।अब तो मेरा रोष सातवें आसमान पर पहुंच गया।// क्या इतना कहने से काम न चल जाता?
//पास पहुंचा तो देखा कि मेरी खिड़की का शीशा टूटा हुआ था, जिसे देखकर मेरा गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया//
//मैंने डपटकर पूछा-"किसने तोड़ा है इसे?.........मेरा मुंह क्या देख रहो सब? जवाब दो।"सभी बच्चे डर गये।/// अगर इसे यूं कहा जाए:
//मैंने डपटकर पूछा-"किसने तोड़ा है इसे?
सभी बच्चे डर गये।
//तब तक मेरी नजर वहीं पास खड़े मेरे अपने बेटे मनीष पर गई,मैं डर गया कि "कहीं इसने तो नहीं तोड़ा,फिर मैं शीशे का दाम कैसे वसूल करूंगा।और बेइज्जती अलग से।"// अपने बेटे का ज़िक्र इस जगह करके आपने कहानी का आधा स्वाद खराब कर दिया. उसका जो ज़िक्र अंत में किया है वही काफी था अपनी बात कहने के लिए.
बाक़ी कहानी ठीक ठाक है. लघुकता कहते समय यदि इन छोटी छोटी बातों का ध्यान रखेंगे तो रचना का प्रभाव कई गुना हो जायेगा. सस्नेह
वाह वाह भाई विन्ध्यश्वरी जी सार्थक चोट करती हुई रचना बधाई हो आपको इस उन्नत रचना हेतु
क्रोध को पानी कर देने वाली सुन्दर लघुकथा. बधाई.
इंसानी फ़ितरत का सटीक चित्रण त्रिपाठी जी! साभार,
त्रिपाठी जी नमस्कार,,,,,
सुंदर कहानी...........बधाई...
फूल सिंह
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