निस्बतें यूँ बढ़ीं हमसे ज़माने की हौले हौले
खुलती गईं सब तहें अफ़साने की हौले हौले
हस्रतें मरने लगी हैं घर बसानेकी हौले हौले
कीमतें कुछ यूँ बढ़ीं आशियानेकी हौले हौले
बस्तियोंमें भी नशा-सा होने लगा है सरेशाम
दीवारें टूटने लगी हैं मयखाने की हौले हौले
फर्क मिट गए हस्पतालों और होटलोंके अब
सूरतें बदल गईं हैं शिफाखाने की हौले हौले
ये कोई प्यार नहीं हैकि दफअतन हो जाता
आदतें आईं दुनिया से निभाने की हौले हौले
गुल हो बालाई पर और ज़मींदोज़ जब तुम
कोशिश करो डाली को झुकाने की हौले हौले
चलके आते थे वो लहराते कदम मेरी तरफ
घंटियाँ बजती थीं मेरे आस्तानेकी हौले हौले
दिल को उस्लूब कहाँ उनकी नर्ममिजाजीका
उसको आएगी अदा प्यार जतानेकी हौलेहौले
राज़ कुछ सब्र करो बाज़ीएउल्फतका शिकार
ज़दमें आएगा कभी तेरे निशानेकी हौले हौले
© राज़ नवादवी
भोपाल, रविवार २३/०९/२०१२
संध्याकाल, ०६.०४
निस्बत- लगाव, सम्बन्ध; शिफाखाने- दवाखाना, डिस्पेंसरी; दफअतन- अचानक; बालाई पर- ऊंचाई पर; ज़मींदोज़- पृथ्वी के तल पे, भूमिगत; आस्तानेकी- चौखट की, ड्योढ़ी की; उस्लूब- पद्धति, आचरण, ढंग; बाज़ीएउल्फतका शिकार- प्रेम रूपी आखेट का शिकार; ज़द- निशाना, सामना, चोट, मार;
Comment
जनाब संजय जी, आपकी दाद का बहुत बहुत शुक्रिया, बड़ी हौसलाअफजाई हुई.
सीमा जी, बहुत बहुत शुक्रिया आपका, कोशिश करता हूँ कि बह्र की बंदिशों की तामील करूँ, लयात्मकता बनी रही. वक़्त मिलने पे इसपे भी काम करूंगा, बहुत कुछ बाकी है, ज़िंदगी की मसरूफीयात से बहुत कुछ चुराना है.
- राज़
शुक्रिया भाई लक्ष्मण जी, आपकी दाद और हर बार की तरह अपने अंदाज़ में की गई शरह के लिए.
बदलते हालत के सही जबाब जी >>>>>>>>>>.धन्यवाद जी .....!!
हस्रतें मरने लगी हैं घर बसानेकी हौले हौले
कीमतें कुछ यूँ बढ़ीं आशियानेकी हौले हौले...जी बिलकुल आखिर पैसा पेड़ पर तो उगता नहीं
गुल हो बालाई पर और ज़मींदोज़ जब तुम
कोशिश करो डाली को झुकाने की हौले हौले......बहुत खूबसूरत और सही सीख
राज़ कुछ सब्र करो बाज़ीएउल्फतका शिकार
ज़दमें आएगा कभी तेरे निशानेकी हौले हौले.........बहुत खूब
राज़ जी मुझे यह तो नहीं पता की गज़ल की कसौटी पर यह खरी है या नहीं पर कहन के लिहाज़ से लाजवाब ....
मुबारकबाद ........
बस्तियोंमें भी नशा-सा होने लगा है सरेशाम ---- चलो खुश किस्मती हुई अब जनाबे आम
दीवारें टूटने लगी हैं मयखाने की हौले हौले गरीबखाना भी बस्तियों में चमन मधुशाला सा
फर्क मिट गए हस्पतालों और होटलोंके अब ------ डरता था हस्पताल के नाम से मियाँ मै तो
सूरतें बदल गईं हैं शिफाखाने की हौले हौले शिफखाने को होटल सा जान चले आए होले होले
ये कोई प्यार नहीं हैकि दफअतन हो जाता ------- दफअतन हो जाता वो दफअतन ही काफूर भी होता
आदतें आईं दुनिया से निभाने की हौले हौले शुक्रियां जो आदते आई दुनिया से निभाने की होले होले
शुक्रया राज नवा दावी भाई जो आपने सरूर चढ़ाया
समझे न समझे मगर लुफ्त उठाए पढ़ कर होले होले
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