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दस हाइकु 
***********
जहर धीमा 
परोसते चेनल 
चरम सीमा 
-------------
चपलता है 
तन-मन स्वस्थ है 
सफलता है 
--------------
चेहरा भाव 
मन की परिस्थिती 
हंसते घाव 
--------------
जंगली फूल 
लान  की हरियाली 
क्यूँ प्रतिकूल ?
--------------
बहती नदी 
कटते यूँ किनारे 
यही है बदी !!
-----------
जूनी शराब 
नयी-नयी  बोतल 
देखो शवाब।
------------
पाखंडी बना 
लालच था पैसों का 
शिखंडी बना!!!
---------
पर्वतमाला 
खुद पर दुशाला 
धरा ने डाला।
---------
बोली चिड़िया 
बरगद के तले 
गयी पीढियां 
--------
जागरण है 
सुबह का सूरज 
क्या स्मरण है?
-------------------
अविनाश बागडे 

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Comment

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प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on October 12, 2012 at 10:51am

एक से बढ़कर एक हाईकू कहे हैं आदरणीय अविनाश बागडे जी, कथ्य और शिल्प की दृष्टि से सुन्दर, मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 12, 2012 at 9:26am

बहुत सुन्दर शिल्पगत सम्रद्ध हाइकु एक से बढ़कर एक बधाई बागडे जी 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 12, 2012 at 9:25am

आदरणीय अविनाश सर जी सादर प्रणाम
सभी सुन्दर हाई कू सर जी बधाई हो

Comment by Ashok Kumar Raktale on October 12, 2012 at 7:43am

आदरणीय अविनाश जी

                       सादर, सुन्दर हाइकू पर बधाई स्वीकार करें.

Comment by Er. Ambarish Srivastava on October 12, 2012 at 12:14am

सभी हाइकू शानदार व जानदार हैं ! इन्हें साझा करने के लिए हार्दिक आभार स्वीकारें !

Comment by AVINASH S BAGDE on October 11, 2012 at 11:43pm

आभार ..आदरणीय "बागी " सर।।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 11, 2012 at 10:26pm

सभी हाइकु कसे हुए है, बहुत बहुत बधाई बागडे साहब |

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