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ग़ज़ल-- एक छोटी सी कोशिश

 देखते ही देखते दिन रात बदल जाते है
पल में लोग अपनी बात बदल जाते है

यूँ बदल गई आब-ओ-हवा मेरे शहर की
घर देख कर यहाँ अब ताल्लुकात बदल जाते हैं

न कर गुरुर बन्दे मेयार-ए-ख़ुद पर
कौन जाने कब किसके हालत बदल जाते हैं

रह गई है मौहब्बत की इतनी ही हकीक़त
रोज आशिको के अब जज्बात बदल जाते हैं

होती है आरजू-ए-मुकतला यहाँ सभी को 
तकदीरे कभी तो कभी ख्वाहिशात बदल जाते है

क्या करें जहाँ में ऐतबार अब किसी का
जब दोस्त ही अपनी औकात बदल जाते हैं 

मेयार = स्तर
मुकतला = ज्यादा

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Comment by PHOOL SINGH on November 12, 2012 at 1:16pm

सैनी  जी प्रणाम.......

सुंदर अतिसुंदर गजल ......"सपरिवार सहित आपको शुभ दीपावली"

फूल सिंह

Comment by Sonam Saini on November 6, 2012 at 12:23pm

Respected Nadir Khan sir ji ...........bahut bahut shukriya houshlaafzai ke liye.....

Comment by Sonam Saini on November 6, 2012 at 12:22pm

Respected Kushwaha sir ji thanks a lot for ur appreciation .........

Comment by नादिर ख़ान on November 5, 2012 at 6:31pm

बहुत बढ़ियां कोशिश है 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on November 5, 2012 at 12:54pm

क्या करें जहाँ में ऐतबार अब किसी का 
जब दोस्त ही अपनी औकात बदल जाते हैं 

बहुत खूब. 

Comment by Sonam Saini on November 2, 2012 at 2:03pm

Thanks a lot seema mam, aapne rachna ko pasand kiya aur apna kimti smay diya , bahut

bahut dhanyvad mam...............

Comment by Sonam Saini on November 2, 2012 at 2:03pm

shukriya sube singh ji...............

Comment by Sonam Saini on November 2, 2012 at 2:01pm

 आदरणीय गणेश जी "बागी" sir ji बहुत बहुत धन्यवाद अपना कीमती समय देने के लिए

Comment by Sonam Saini on November 2, 2012 at 2:00pm

 शुक्रिया वीनस केसरी जी 

Comment by seema agrawal on October 24, 2012 at 9:54pm

घर देख कर यहाँ अब ताल्लुकात बदल जाते हैं....बहुत खूब सोनम जी 
सुन्दर रचना ...बधाई 

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