तेरे वादे कूट-पीस कर
अपने रग में घोल रही हूं
खबर सही है ठीक सुना है
मैं यमुना ही बोल रही हूं
पथ खोया पहचान भुलाई
बार-बार आवाज लगाई
महल गगन से ऊंचे चढ़कर
तुमने हरपल गाज गिराई
मेरे दर्द से तेरे ठहाके
जाने कब से तोल रही हूं
लिखना जनपथ रोज कहानी
मैं जख्मों को खोल रही हूं
ले लो सारे तीर्थ तुम्हारे
और फिरा दो मेरा पानी
या फिर बैठ मजे से लिखना
एक थी यमुना खूब था पानी
बड़े यत्न से तेरी अमानत
गाद-गाद में घोल रही हूं
रहना रहबर सदा सलामत
मैं तो यूं ही बोल रही हूं ।
Comment
मैं तो यूं ही बोल रही हूं ।..................behad sunder..Shows a protest and spirit..lovely
JHA SAHIB PARYABARANKE HOTE LOSS KO YAMUNA KI PIDA BAHUT SUNDER BADHAI
आज देश कि प्रमुख नदियों पर इस तरह पीड़ा व्यक्त कि जा रही है तो अन्य सरिताओं का हाल क्या होगा? आपने बहुत हि सुन्दर भाव प्रस्तुत किये हैं आदरणीय राजेश जी. हार्दिक बधाई स्वीकारें.
आप सभी की प्रीतिकर उपस्थिति एवं उत्साहवर्धन के लिए हृदय से आभार
पूरा का पूरा गीत जिस भाव और विचार को ले कर बुना गया है , वो तो लाजवाब है ही जिस प्रकार से उसका निर्वहन हुआ है वो और भी अद्भुत है......... कटाक्ष और पीड़ा की अभिव्यक्ति इतनी खूबसूरत ढंग से की जा सकती है यह महसूस करना अच्छा लगा ...
बहुत बहुत बधाई राजेश जी
आनंद आ गया गीत और गीत में समाहित भाव को प्राप्त कर के
पूरा का पूरा गीत जिस भाव और विचार को ले कर बुना गया है , वो तो लाजवाब है ही जिस प्रकार से उसका निर्वहन हुआ है वो और भी अद्भुत है......... कटाक्ष और पीड़ा की अभिव्यक्ति इतनी खूबसूरत ढंग से की जा सकती है यह महसूस करना अच्छा लगा ...
बहुत बहुत बधाई राजेश जी
जनाब,,राजेश कुमार झा जी ,,, बधाई ,,,बधाई ,,,बधाई ,,,बधाई ,,,बधाई ,,, जितनी बधाइयां दूं फिर भी कम हैं ,यमुना की व्यथा-कथा पढकर मन भाव विभोर हो उठा ,सुन्दर भावों के साथ शब्द-शिल्प की यह कारीगरी आप के इस गीत में चार नहीं कई चाँद लगा गयी .. आजकल अच्छे गीत पढने नहीं मिलते ,,आपके इस गीत ने मुझे तपते मरुस्थल में सुधा पान करा दिया ..आपके इस कृतित्व के लिए तहे-दिल से मुबारकबाद
बड़े यत्न से तेरी अमानत
गाद-गाद में घोल रही हूं
रहना रहबर सदा सलामत
मैं तो यूं ही बोल रही हूं ।
कटाक्ष को सुन्दर शब्दों से अभिव्यक्त किया है
समय ही तंज़ का है,
सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए बधाई स्वीकारें
ले लो सारे तीर्थ तुम्हारे
और फिरा दो मेरा पानी
या फिर बैठ मजे से लिखना
एक थी यमुना खूब था पानी
आदरणीय राजेश कुमार जी, यह रचना केवल यमुना का ही प्रतिनिधित्व नहीं कर रही बल्कि भारत की सभी नदियों की वही स्थिति है, नदियाँ हमारी जीवन रेखा मानी जाती हैं, और आज चाहे अनचाहे नदियों को बर्बाद कर रहे हैं | बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर |
नदी की आत्मा की व्यथा को बेहद संवेदन शील अंदाज में लिखा है सीधे दिल में उतरते शब्द जो शायद ही कोई भुला पाए इस कविता के लिए आपकी लेखनी को नमन राजेश जी
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