आदरणीय प्राची जी के कहने और भ्राताश्री अम्बरीश जी के द्वारा दिए गए दोहों के नियमों को पालन करते हुए, दोहे लिखने का मेरा प्रथम प्रयास है आप सभी को सादर समर्पित आप सभी के सहयोग की आकांक्षा लिए अरुन शर्मा.
आनन फानन में किया, दोहों का निर्माण।
मुझसे मेरी प्रियतमा, मांगे प्रेम प्रमाण।।
हाँथ जोड़ द्वारे खड़ा, माते जाओ जाग।
शिष्य मुझे स्वीकार के, खोलो मेरे भाग।।
पत्थर जोड़े घर बने, पत्थर गढ़े भगवान।
अपनी-अपनी सोंच में, आगे हर इंसान।।
दोहों का भोजन करूँ, दोहों से जलपान।
दोहे मेरी जिंदगी, दोहे मेरी जान।।
माँ तेरे विरह में, चुपचुप रहते तात।
आभाषित होता मुझे, दिन भी जैसे रात।।
Comment
आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी स्नेह व आशीष यूँ ही बनाए रखियेगा
प्रिय अरुण दोहों पर आपका प्रयास सराहनीय है बाकी प्रिय प्राची और सीमा जी की बात का अनुमोदन करती हूँ आप बहुत जल्दी दोहों में निपुण हो जाओगे |
आदरणीया सीमा दी काफी त्रुटियाँ हैं फिर भी आप सभी ने जो मेरा हौंसला बढ़ाया है मैं सदैव कृतज रहूँगा अनेक-2 धन्यवाद.
आनन फानन में किया, दोहों का निर्माण।
मुझसे मेरी प्रियतमा, मांगे प्रेम प्रमाण।।........हा हा हा अरुण सच में ये निर्माण आनन् -फानन ही लग रहा है आपकी ग़ज़लों में जिस प्रकार की विचारशीलता मिलाती है वो इनमे नहीं है ...पर एक बात की बधाई दूँगी कि शिल्प की दृष्टि से दोहे १००% न सही पर ९०% तो खरे हैं और यह आश्वस्ति है इस बात की कि आपका यह प्रथम प्रयास सही दिशा में है
दोहों की विशेषता उसका कथ्य ही है किसी कथ्य पर बहुत विचार करने के पश्चात उसे दोहों में अनुवादित करिए कथ्य स्वयं में सम्पूर्ण होना चाहिए
दोहे ऐसे बांधिए जैसे सुरभित फूल l
ईश चरण वंदन करे, भाव लिए अनुकूल
शुभकामनाएं ........
आदरणीय सर सत्य कहा है आपने इन सभी को सुधारने कर पुनः प्रयास करता हूँ आभार.
आदरणीया प्राची जी तहे दिल से आभार आपका सत्य है काफी त्रुटियाँ है खास कर मात्रा गणना में, अगली बार और अधिक मेहनत करूँगा. सादर
आनन् फानन में किया, दोहों का निर्माण,
प्रिय अनुज अरुण,
दोहों कर किया गया प्रथम प्रयास मुग्धकारी है,
दोहों का भोजन करूँ, दोहों से जलपान।
दोहे मेरी जिंदगी, दोहे मेरी जान।।...............विधा विशेष के प्रति इतना प्रेम प्रथम प्रयास में मुग्ध कर रहा है.
आनन फानन में किया, दोहों का निर्माण।
मुझसे मेरी प्रियतमा, मांगे प्रेम प्रमाण।।......दोहा निर्दोष है , पर क्या दोनों पदों के कथ्य में कोई सामंजस्य है??
हाँथ जोड़ द्वारे खड़ा, माते जाओ जाग।
शिष्य मुझे स्वीकार के, खोलो मेरे भाग।।....... माता को जगा कर शिष्य बनाने का निवेदन, जबकि माँ तो होती ही प्रथम गुरु है
पत्थर जोड़े घर बने, पत्थर गढ़े भगवान।...सम चरण की मात्रा गणना पुनः करे.
अपनी-अपनी सोंच में, आगे हर इंसान।।.....सोंच है या सोच ?
माँ तेरे विरह में, चुपचुप रहते तात।...........विषम चरण की मात्रा गणना पुनः करे.
आभाषित होता मुझे, दिन भी जैसे रात।।........आभासित लिखना चाहते हैं, टंकण त्रुटि सुधार लें.
इस प्रयास के लिए बहुत बहुत बधाई, जल्दी ही आप बिलकुल शुद्ध दोहे लिखें ऐसी शुभकामनाएं हैं.
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