फूल ताउम्र तो बहारों में नहीं रहते
हम भी अब अपने यारों में नहीं रहते
मुहब्बत है गर तो आज ही कह दो मुझसे
ये फैसले यूं उधारों में नहीं रहते
अब जानी है हमने दुनिया की हकीकत
अब हम आपके खुमारों में नहीं रहते
दिल तोड़ दो बेफिक्र कोई कुछ न कहेगा
ये छोटे से किस्से अखबारों में नहीं रहते
मेरा रकीब भी आज मेरी खिलाफत में है
लोग हमेशा तो किरदारों में नहीं रहते
बस वजूद की ही जंग है महफिलों में बाकी
वो तूफ़ान भी अब आशारों में नही रहते
-पुष्यमित्र उपाध्याय
Comment
मेरा रकीब भी आज मेरी खिलाफत में है
लोग हमेशा तो किरदारों में नहीं रहते..........
पुष्यमित्र साहेब , ..... बहुत खूबसूरत पेशकश . दाद कुबूल फरमाएं!
भाई जी सुन्दर अभिव्यक्ति है
हार्दिक बधाई स्वीकारें
निवेदन है कि मुझे इस ग़ज़ल का अर्कान बता दें तो लयात्मक रूप से पढ़ कर और आनंद उठा सकूं ....
मेरा रकीब भी आज मेरी खिलाफत में है
लोग हमेशा तो किरदारों में नहीं रहते..........
पुष्यमित्र साहेब , रकीब तो खिलाफत में रहेगा ही ..... बहुत खूबसूरत पेशकश . दाद कुबूल फरमाएं
दिल तोड़ दो बेफिक्र कोई कुछ न कहेगा
ये छोटे से किस्से अखबारों में नहीं रहते
मेरा रकीब भी आज मेरी खिलाफत में है
लोग हमेशा तो किरदारों में नहीं रहते......
नमस्कार पुष्यमित्र जी ..
बहुत ही खुबसूरत गजल .. बधाई आपको
वाह बहुत उम्दा गज़ल क्या कहने पुष्यमित्र जी
लाजवाब रचना ...
मेरा रकीब भी आज मेरी खिलाफत में है
लोग हमेशा तो किरदारों में नहीं रहते..........wah wah wah wah no more words
सादर आभार व्यक्त करता हूँ आदरणीय श्री गणेश सर....आशीष बनाए रखिये
-आपका अनुज पुष्यमित्र
फूल ताउम्र तो बहारों में नहीं रहते
हम भी अब अपने यारों में नहीं रहते................शानदार मतला,
मुहब्बत है गर तो आज ही कह दो मुझसे
ये फैसले यूं उधारों में नहीं रहते......................वाह वाह, बहुत खूब , सुन्दर कहन, साफ़ साफ़ बोल दो, नहीं तो बेकार समय बर्बाद करने से क्या फायदा, कही और ट्राई किया जाय ...हा हा हा हा |
अब जानी है हमने दुनिया की हकीकत
अब हम आपके खुमारों में नहीं रहते.............बहुत खूब जनाब , यह शेर भी बढ़िया निकाला है |
दिल तोड़ दो बेफिक्र कोई कुछ न कहेगा
ये छोटे से किस्से अखबारों में नहीं रहते........दिल के अखबार में कई किस्से छपे होते है भाई , बढ़िया शेर |
मेरा रकीब भी आज मेरी खिलाफत में है
लोग हमेशा तो किरदारों में नहीं रहते..........आय हाय हाय , क्या बात है, बहुत खूब |
बस वजूद की ही जंग है महफिलों में बाकी
वो तूफ़ान भी अब आशारों में नही रहते.......अच्छा है |
दाद कुबूल करें पुष्यमित्र जी |
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