For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

फूल ताउम्र तो बहारों में नहीं रहते


फूल ताउम्र तो बहारों में नहीं रहते
हम भी अब अपने यारों में नहीं रहते

मुहब्बत है गर तो आज ही कह दो मुझसे
ये फैसले यूं उधारों में नहीं रहते

अब जानी है हमने दुनिया की हकीकत
अब हम आपके खुमारों में नहीं रहते

दिल तोड़ दो बेफिक्र कोई कुछ न कहेगा
ये छोटे से किस्से अखबारों में नहीं रहते

मेरा रकीब भी आज मेरी खिलाफत में है
लोग हमेशा तो किरदारों में नहीं रहते

बस वजूद की ही जंग है महफिलों में बाकी
वो तूफ़ान भी अब आशारों में नही रहते


-पुष्यमित्र उपाध्याय

Views: 613

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on December 12, 2012 at 4:27am

मेरा रकीब भी आज मेरी खिलाफत में है 
लोग हमेशा तो किरदारों में नहीं रहते..........

पुष्यमित्र साहेब ,  ..... बहुत खूबसूरत पेशकश . दाद कुबूल फरमाएं!

Comment by वीनस केसरी on December 12, 2012 at 2:12am

भाई जी सुन्दर अभिव्यक्ति है
हार्दिक बधाई स्वीकारें
 
निवेदन है कि मुझे इस ग़ज़ल का अर्कान बता दें तो लयात्मक रूप से पढ़ कर और आनंद उठा सकूं ....

Comment by satish mapatpuri on December 12, 2012 at 1:27am

मेरा रकीब भी आज मेरी खिलाफत में है
लोग हमेशा तो किरदारों में नहीं रहते..........

पुष्यमित्र साहेब , रकीब तो खिलाफत में रहेगा ही ..... बहुत खूबसूरत पेशकश . दाद कुबूल फरमाएं

Comment by MAHIMA SHREE on December 11, 2012 at 10:49pm

दिल तोड़ दो बेफिक्र कोई कुछ न कहेगा
ये छोटे से किस्से अखबारों में नहीं रहते

मेरा रकीब भी आज मेरी खिलाफत में है
लोग हमेशा तो किरदारों में नहीं रहते......

नमस्कार पुष्यमित्र जी ..

बहुत ही खुबसूरत गजल .. बधाई आपको



Comment by नादिर ख़ान on December 11, 2012 at 10:39pm

वाह बहुत उम्दा गज़ल क्या कहने पुष्यमित्र जी 

लाजवाब रचना ...

Comment by ajay sharma on December 11, 2012 at 10:01pm

मेरा रकीब भी आज मेरी खिलाफत में है 
लोग हमेशा तो किरदारों में नहीं रहते..........wah wah wah wah no more words 

Comment by Pushyamitra Upadhyay on December 11, 2012 at 9:51pm

सादर आभार व्यक्त करता हूँ आदरणीय श्री गणेश सर....आशीष बनाए रखिये
-आपका अनुज पुष्यमित्र


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 11, 2012 at 9:17pm

फूल ताउम्र तो बहारों में नहीं रहते
हम भी अब अपने यारों में नहीं रहते................शानदार मतला,

मुहब्बत है गर तो आज ही कह दो मुझसे
ये फैसले यूं उधारों में नहीं रहते......................वाह वाह, बहुत खूब , सुन्दर कहन, साफ़ साफ़ बोल दो, नहीं तो बेकार समय बर्बाद करने से क्या फायदा, कही और ट्राई किया जाय ...हा हा हा हा |

अब जानी है हमने दुनिया की हकीकत
अब हम आपके खुमारों में नहीं रहते.............बहुत खूब जनाब , यह शेर भी बढ़िया निकाला है |

दिल तोड़ दो बेफिक्र कोई कुछ न कहेगा
ये छोटे से किस्से अखबारों में नहीं रहते........दिल के अखबार में कई किस्से छपे होते है भाई , बढ़िया शेर |

मेरा रकीब भी आज मेरी खिलाफत में है
लोग हमेशा तो किरदारों में नहीं रहते..........आय हाय हाय , क्या बात है, बहुत खूब |

बस वजूद की ही जंग है महफिलों में बाकी
वो तूफ़ान भी अब आशारों में नही रहते.......अच्छा है |

दाद कुबूल करें पुष्यमित्र जी |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"चल मुसाफ़िर तोहफ़ों की ओर (लघुकथा) : इंसानों की आधुनिक दुनिया से डरी हुई प्रकृति की दुनिया के शासक…"
9 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"सादर नमस्कार। विषयांतर्गत बहुत बढ़िया सकारात्मक विचारोत्तेजक और प्रेरक रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
10 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"आदाब। बेहतरीन सकारात्मक संदेश वाहक लघु लघुकथा से आयोजन का शुभारंभ करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन…"
11 hours ago
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"रोशनी की दस्तक - लघुकथा - "अम्मा, देखो दरवाजे पर कोई नेताजी आपको आवाज लगा रहे…"
21 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"अंतिम दीया रात गए अँधेरे ने टिमटिमाते दीये से कहा,'अब तो मान जा।आ मेरे आगोश…"
23 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"स्वागतम"
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ

212 212 212 212  इस तमस में सँभलना है हर हाल में  दीप के भाव जलना है हर हाल में   हर अँधेरा निपट…See More
Tuesday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"//आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी जी, जितना ज़ोर आप इस बेकार की बहस और कुतर्क करने…"
Saturday
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"आदरणीय लक्ष्मण जी बहुत धन्यवाद"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी जी, जितना ज़ोर आप इस बेकार की बहस और कुतर्क करने…"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"आ. रचना बहन, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"आ. भाई संजय जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service