व्यस्त फुटपाथ की तपती फर्श पर ,
तपती धूप की किरणों से ,
जलते शरीर से बेखबर,
मक्खियों की भीड़ से बेअसर ,
फटे-गंदे कपड़ो से लिपटे
भूखे पेट, एक माँ बच्ची के साथ
बेसुध सो रही ...
कही सामाजिक अव्यवस्था तो..
कही नियति ही सही,
पर मनुष्य के कष्ट सहने के शक्ति की
कोई सीमा भी तो नहीं !!! अन्वेषा
Comment
Seema Madam, Vinus kesari ji, Jawahar Lal ji, Arun ji, Ajay Ji ewam Rajesh madam....mujhe behad khushi hai aap logo ne mujhe sweekara hai....bahut pahle ak baar aaye thi yaha...phir ab laut aayi hu :) Asha hai meri kavitayen aapko pasand aayegi...Abhar
Seema Ji, Sourabh ji...mujhe aap ke sujhav pasand hai...par "jhund" ak samanya shabd hai..."bheed" shabd kasht ka anubhav deta hai.......esliye maine uska prayog kiya tha....
एक मार्मिक द्रश्य पर संवेदनात्मक भावों को शब्दबद्ध करती क्षणिका सच में माँ की सहनशक्ति की कोई सीमा नहीं बधाई इस क्षणिका पर अन्वेषा जी
Adarniya anwesha ji samjik bismtao ka aapne marmik chitran kiya he besak aap badhai ki hakdar he jo me aapko somp raha hu
बेहद मार्मिक व संवेदनशील रचना मानों हर एक पंक्ति यूँ सामने खड़ी होकर सच बोल रही हों
आदरणीय अन्वेषा जी, सादर अभिवादन!
निश्चित ही एक माँ के सहनशक्ति कोई सीमा नहीं! आपकी सम्वेदना को दर्शाती रचना! बधाई स्वीकारें!
जैसे रचना सचरित्र सजीव हो उठी हो .....
जैसे ठंढक़ वाली यह आधी रात मई की धूप भरी दोपहर बन गई हो
जैसे कोई औरत संवेदनहीन नज़रों से घूर रही हो
जैसे उसकी नज़र पूछती हो ....
मनुष्य के कष्ट सहने के शक्ति की कोई सीमा भी तो नहीं !!!
एक शब्द चित्र जो कठोर यथार्थ से उपजा है ....आपकी संवेदनशीलता को भी दर्शाता है ....बहुत बहुत बधाई सफल अभिव्यक्ति के लिए अन्वेषा जी
सौरभ जी की बात से मैं भी सहमत हूँ
Saurabh Pandey ji....Prachi Singh Ji..aap dono ka phir se shukriya..Saurabh ji...aapke sujhav sweekar....aur bhawisya me unki pratiksha bhi rahegi...
Chattani Ji...aap ka bhi bahut bahut abhar...
क्षणिका सदृश भाव उमगे और आपने शब्दबद्ध कर लिया. अच्छी अभिव्यक्त.
मक्खियों की भीड़ .. का कौतुक रोचक तो लगा किन्तु मक्खियों के झुंड ही उचित रहता. वैसे यह निजी विचार हैं. कोई दवाब नहीं, न कोई सुझाव.
प्रिय अन्वेषा जी,
आपके संवेदी ह्रदय नें जिस कष्टकारी स्थिति से ग्रस्त एक माँ की सहनशक्ति को शब्द चित्र में उकेरा है, उस संवेदनशीलता के लिए आपको साधुवाद.
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