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मेरी चाहत की दुनिया आ के फिर संवार दो

मेरी चाहत की दुनिया आ के फिर संवार दो

ठिठुरती शीत में सिमटी हुई सी रात है
अकेलेपन का गम ये इश्क की सौगात है
विरह ये लग रहा जैसे हृदय आघात है
वक़्त के सामने मेरी भी क्या औकात है

प्रिये तडपाओ न अब और जरा प्यार दो
मेरी चाहत की दुनिया आ के फिर संवार दो

सुबह है शबनमी प्यारी गुलाबी शाम है
हवा के हाथ में कोई तिलिस्मी जाम है
युगल स्वक्छंद फिरते दे रहे पयाम हैं
इश्क करते रहो ये आशिकों का काम है

प्रिये मेरे गले को बाहों का तुम हार दो
मेरी चाहत की दुनिया आ के फिर संवार दो

सूर्य धूमिल हुआ है गुनगुनाती धूप है
पूर्ण योवन से भरा प्रकृति का ये रूप है
खिले हैं मन में आज प्रेम के कुछ पुष्प फिर
नहीं उपमा कोई रंग ये अनूप है

प्रिये दिल के खालीपन को आज मार दो
मेरी चाहत की दुनिया आ के फिर संवार दो

तुम्हे न खो दूं कभी दिल में एक आह है
सिर्फ और सिर्फ तुम्हे पाने की ही चाह है
कदम बढ़ा चुका हूँ इश्क के खातिर फिर मैं
एक मंजिल है मेरी और एक राह है

प्रिये दो लफ्ज बोल प्रेम का उपहार दो
मेरी चाहत की दुनिया आ के फिर संवार दो

संदीप पटेल "दीप"

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Comment by AVINASH S BAGDE on December 15, 2012 at 8:48pm

सुबह है शबनमी प्यारी गुलाबी शाम है

हवा के हाथ में कोई तिलिस्मी जाम है...nice

Comment by Dr.Ajay Khare on December 15, 2012 at 6:21pm

meri tamnao ki tasbeer tum nikhar do pyasi he jindgi aur mujhe pyar do  mantav yahi he maja aa gaya sandeep ji badhai

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