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अरुण जी
बेहतरीन ग़ज़ल हार्दिक बधाई स्वीकारें
सिमटना दायरों में और बातें चाँद से करना ,
ये करता हूँ जो माँ मुझको तुम्हारी याद आती है ।..बहुत खूब
अंधेरों की सियासत से जो जुगनू बनके लड़ते हैं ,
सुबह की लालिमा श्रद्धा से उनको सिर नवाती है ।सही फरमाया आपने
आदरणीय अभिनव जी .. बहुत -2 बधाइयाँ आपको
बेहतरीन ग़ज़ल.. मतले ने ही मन मोह लिया.. सरतापा आनंद आ गया!
मेरे फ़ेवरेट ये दो शे'र
सिमटना दायरों में और बातें चाँद से करना ,
ये करता हूँ जो माँ मुझको तुम्हारी याद आती है! और..
बदन की ही तरह मन में भी कोई खोट मत रखना ,
बधाईयां भईया.. :-)
अरुण जी
खूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकारें
पूरी ग़ज़ल पसंद आई
यह दो अशआर विशेष पसंद आए
सुबह की लालिमा श्रद्धा से उनको सिर नवाती है ।
अरुण जी बेहतरीन ग़ज़ल कही है ढेरों दाद कुबूल करें !!!अंधेरों की सियासत से जो जुगनू बनके लड़ते हैं ,
अंधेरों की सियासत से जो जुगनू बनके लड़ते हैं ,
सिमटना दायरों में और बातें चाँद से करना ,
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