थर्रा गये मंदिर ,मस्जिद ,गिरिजा घर
जब कर्ण में पड़ी मासूम की चीत्कार
सहम गए दरख़्त के सब फूल पत्ते
बिलख पड़ी हर वर्ण हर वर्ग की दीवार
रिक्त हो गए बहते हुए चक्षु समंदर
दिलों में नफरतों के नाग रहे फुफकार
उतर आये दैत्य देवों की भूमि पर
और ध्वस्त किये अपने देश के संस्कार
दर्द के अलाव में जल रहे हैं जिस्म
नाच रही हैवानियत मचा हाहाकार
देख खतरे में नारियों का अस्तित्व
सर्व नाश भू मंडल पर ले रहा आकार
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Comment
आदरणीया राजेश कुमारी जी,
वेदना, वेदना, वेदना सब ओर....
अच्छी प्रस्तुति के लिए साधुवाद।
विजय निकोर
कल ही ऐसे प्रस्तर ह्रदय माता पिता से सामना हुआ, जिन्होंने बेटी जन्मने पर उसका चेहरा नहीं देखा और माँ ने बच्ची को तीन दिन तक दूध भी नहीं पिलाया.
और एक ऐसी माँ से सामना हुआ जो अपनी दूसरी बेटी जन्मने पर बहुत रोई, और अपनी बच्ची को अपनी जेठानी के दो वर्ष के बेटे से बदल लिया.
कैसी विडम्बना है, कैसा आधुनिक समाज है यह, कैसी प्रगतिशीलता है ...
सिर्फ दर्द है, जिसे बयान करने के लिए शब्द भी कम हैं.
प्राची जी, मन बहुत दुखी हुआ यह पढ़ कर .. हूक-सी अटकी हुई है ... कि जैसे शोक में हूँ ।
विजय निकोर
आदरणीया राजेश कुमारी जी,
सादर अभिवादन
मुहीम में आपका योगदान सराहनीय है. साथ हूँ मैं भी
रचना हेतु आधे.
प्रिय अरुण काश यह संवेदन शीलता सभी के दिलों में हो तो ये सब लिखने की आवश्यकता ही नहीं होगी बहुत बहुत हार्दिक आभार
प्रिय महिमा श्री हार्दिक आभार आपका आप ने सच कहा यदि स्थिति ऐसी ही बनी रही तो ये टिक टिक वक़्त भी नहीं देगी सँभलने का
आदरणीय लक्ष्मण जी हार्दिक आभार आपका ,हर संवेदन शील हृदय दुहाई दे रहा है आज
आदरणीया सर्व प्रथम आपको नमन, नारी ह्रदय के वेदना का जो दृश प्रस्तुत किया है पढ़कर मन अशांत हो गया है, बहुत सी घटनाएं सामने आके खड़ी हो गई हैं और जवाब मांग रही हों आगे कुछ और कह पाना असंभव है.
आदरणीया प्राची जी .. किसी कारणवश नारीशक्ति वाले महोत्सव में शामिल नहीं हो पायी थी . अभी मैंने आपके द्वारा उदृत आपकी रचना पढ़ी , बहुत ही भायी / बहुत ही उत्कृष्ट और मन को झंझकोर देनेवाली अभिवयक्ति ...
उतर आये दैत्य देवों की भूमि पर
और ध्वस्त किये अपने देश के संस्कार
दर्द के अलाव में जल रहे हैं जिस्म
नाच रही हैवानियत मचा हाहाकार
देख खतरे में नारियों का अस्तित्व
सर्व नाश भू मंडल पर ले रहा आकार
आदरणीया राजेश दी ..नमस्कार
वाकई में सर्वनाश की टिक टिक सुनाई देने लगी है . जिस तरह से कन्या भूर्ण हत्या . बलात्कार . मानसिक और अनेको प्रकार की शारीरिक प्रताडना दिनों दिन बढ़ता जा रहा है .. वो दिन दूर नहीं जब प्रकृति अपने तरीके से सबक सिखाएगी ही ..
आपके मन का दुःख और आक्रोश हम सब समझ सकते है और शामिल भी है ..
उतर आये दैत्य देवों की भूमि पर,और ध्वस्त किये अपने देश के संस्कार
दर्द के अलाव में जल रहे हैं जिस्म, नाच रही हैवानियत मचा हाहाकार ।
बहुत मार्मिक चित्रण पर हमारा मन उद्वेलित हो कह रहा है -
जिस्म के हर कतरे पर फुट रहा आक्रोश, नारी मन में म्रत्यु करे पुकार
सद्पुरुष फटी आँखे सब देख करता रोष, बिन नारी के नैया डूब रही मझधार ।
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