बालक-वृंद सुनैं, यह भारत-भूमि सदा सुख-साध भरी है
पावन चार नदी तट हैं, इतिहास कहे छलकी ’गगरी’ है
नासिक औ हरिद्वार-उजैन क घाट प बूँद ’अमी’ बिखरी है
धाम प्रयाग विशेष सदा जहँ धर्म-सुकर्म ध्वजा फहरी है
पुण्यधरा तपभूमि महान जो बारह साल प कुंभ सजावैं
तीनहुँ कर्म व धर्म निछावर पुण्य-प्रभा यशगान सुनावैं
गंग क संग मिले जमुना निज धार सरस्वति गुप्त बहावैं
तीर्थ मँ तीर्थ प्रयाग सुतीर्थ, सुक्षेत्र क तथ्य पुरानहुँ गावैं
माघ क मास जुटान बने, जन मुग्ध दिखैं, मनभाव रसे हैं
माघ व पूस मँ जोग जगा, सुघड़ी जुटते, निकले घर से हैं
संगम के तट कल्प-प्रवास क भाव से तृप्त, समान कसे हैं
तंबु-कनात व बर्तन-बासन साज-सजे, बहु गाँव बसे हैं
पाँच नहान करैं तिथि वार, यही उनके भव-जाल छुड़ावैं
मौनि-अमावस की महिमा अति उच्च सदा गणना समुझावैं
मास-प्रवास मँ साध रहे सिकता पर जीवन-जाल सँधावैं
लोक समाज अलौकिक है, इनके तप को हम शीष नवावैं
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सौरभ
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[ गगरी - अमृत-कुंभ ; अमी - अमिय, अमृत ; तीनहुँ कर्म - तीनों कर्म यानि सुकर्म, अकर्म और विकर्म ; धर्म - कर्तव्य, दायित्व ; जुटान - जमावड़ा ; जन - लोग-बाग़ ; माघ व पूस - मार्गशीष और पौष का मास ; जोग जगा - संयोग हुआ ; सुघड़ी जुटते - सही समय आते ही ; कल्प-प्रवास - संगम के तट पर एक माह के प्रवास करने की प्रथा ; समान कसे हैं - सामान आदि की व्यवस्था करना ; बर्तन-बासन - सारे बर्तन, चूल्हे-चौके और सारा असबाब ; बहु गाँव - कई गाँव ; पाँच नहान - पाँच मुख्य स्नान जो कुंभ में सर्वाधिक महत्व के माने जाते हैं ; तिथि वार - तिथि के अनुसार ; भव-जाल - सांसारिक बंधन ; मौनि अमावस - मौनी अमावस्या की तिथि जो सभी स्नानों में सबसे विशिष्ट होती है ; गणना समुझावैं - पंचाग समझाते हैं ; सिकता - बालुका राशि, रेत ; जीवन-जाल - नये तरह की दिनचर्या (जीवन) को जीना ]
उपरोक्त सवैया का सस्वर पाठ सुनें.
Comment
मत्तगयन्द सवैयों की की गाडी पर बैठा कर आपने चारो कुंभ स्थल की सैर करवा दी |आगामी 14 जनवरी, 2013 को गंगा और यमुना के तट पर शुरू होने जा रहे इस महाकुम्भ से पूर्व आपके इस कुम्भ दर्शन ने माहौल ही बना दिया मेले का
गंग क संग मिले जमुना निज धार सरस्वति गुप्त बहावैं
तीर्थ मँ तीर्थ प्रयाग सुतीर्थ, सुक्षेत्र क तथ्य पुरानहुँ गावैं....सभी प्रयाग वासियों के लिए यह पंक्तियाँ गर्व अनुभव का कारण रहेंगी
कुम्भ के दौरान होने वाले विशेष आयोजन ,स्नान और उनसे प्राप्त होने वाले पुण्य को बहुत सुन्दरता से प्रस्तुत किया है
माघ क मास जुटान बने, जन मुग्ध दिखैं, मनभाव रसे हैं
माघ व पूस मँ जोग जगा, सुघड़ी जुटते, निकले घर से हैं
संगम के तट कल्प-प्रवास क भाव से तृप्त, समान कसे हैं
तंबु-कनात व बर्तन-बासन साज-सजे, बहु गाँव बसे हैं.....वाह पूरा चित्र ही खींच दिया
महाकुम्भ के आयोजन और उससे सम्बंधित जानकारी को सजीव करने के लिए बधाई सौरभ जी
आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, मत्तगयन्द सवैया से महाकुम्भ के स्थल और स्नानो सा वर्णन बहुत रोचक और प्रेरणादायी है. सुन्दर सवैयों पर हार्दिक बधाई स्वीकारें.
महाकुम्भ के इतने सुन्दर वर्णन के लिए साधुवाद!
विजय निकोर
मत्तगयन्द सवैया मस्त बना संगम तट द्रश्य मनहारी है
तीर्थराज प्रयाग में इस बार आयोजित हो रहे महाकुम्भ का बहुत सुन्दर वर्णन किया है आदरणीय सौरभ जी.
गंग क संग मिले जमुना निज धार सरस्वति गुप्त बहावैं......इस पंक्ति के लिए विशेष बधाई.
कुम्भ के दौरान कैसा दृश्य होता है, यह मनस पटल पर पूर्णतः चित्रित हो रहा है.
इन सुन्दर मत्तगयन्द सवैयों के लिए हार्दिक बधाई.
आदरणीय गुरुदेव श्री माघ और पूस के दिनों में प्रयागराज तट पर कुम्भ स्नान का अलौकिक वर्णन, मानो ऐसा प्रतीत हो रहा है कि तम्बू में हूँ सुबह-२ जल्दी उठकर दादी जी को स्नान के लिए ले जाना है, सारा-२ दिन प्रभु का गुणगान हो रहा है, पृथक-२ लोगों से मेल-मिलाप हो रहा है, जाड़े का असर मानो ख़तम सा हो गया है. हार्दिक बधाई गुरुदेव
बहुत सुन्दर मन भावन सवैया,बधाई आदरणीय श्री सौरभ पाण्डेय जी -
पढ़ रचना गाये सवैया सौरभ का, का कमाल भया है
लगता ऐसे जैसे हम पहुच गए प्रयाग में झट नदी तट
मन करे पाँच नहान करैं तिथि वार, जो हमरे भव-जाल छुड़ावैं
अलौकिक हो जावे तन मन, साधू संतन को हम शीश नवावे ।
सादर
वाह आदरणीय सौरभ जी आपके इस मत्त गयंद सवैया में प्रयाग में कुम्भ स्नान का अलौकिक वर्णन से मानो हमने भी गंगा यमुना सरस्वती,आदि पावन नदियों में डुबकी लगा ली है और महा कुम्भ का आनंद प्राप्त कर लिया है ,जो हकीकत में आज तक नहीं किया, बहुत अच्छा लगा पढ़कर एक द्रश्य सा आँखों के सामने तैर गया ,बहुत बहुत बधाई आपको रचना के माध्यम से कुम्भ जैसे धार्मिक अनुष्ठानों से परिचय कराने हेतु ।
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