अंततः हम एकल ही थे
स्मृति में कहाँ रही सुरक्षित
जन्म लेने की अनुभूति
और ना होशो हवास में
मौत को जी पायेंगे
समस्त
कौतुहल विस्मय
अघात संताप
रणनीति कूटनीति तो
मध्य में स्थित
मध्यांतर की है
उसमे भी
जब तुमने
ज़मीन छीनकर ये कहा की
सारा आकाश तुम्हारा
मैंने पैरों का मोह त्याग दिया
और परों को उगाना सीख लिया
अब बाज़ी मेरे हाथ में थी
लेकिन हुकुम का इक्का
अब भी तुम्हारे पास ही रहा
उकाबों का झुण्ड जब तब
नन्ही गौरैया के इर्द गिर्द
मंडराता रहा
बाज आ जाओ वरना
अब मैं नाखून उगाना सीख लुंगी
और तब
आस्मां में उड़ने के साथ साथ
जमी पर भी पैर मेरे होंगे
क्योंकि
तुम्हारे निजाम में
आधी जमींदारी हमारी भी है|
क्या कहते हो ???
गुल सारिका
Comment
:) prayas ka swagat....sunder
जब तुमने
ज़मीन छीनकर ये कहा की
सारा आकाश तुम्हारा
अच्छी रचना
सुन्दर रचना
नन्ही गौरैया के इर्द गिर्द
मंडराता रहा
बाज आ जाओ वरना
अब मैं नाखून उगाना सीख लुंगी
और तब
आस्मां में उड़ने के साथ साथ
जमी पर भी पैर मेरे होंगे bahut hi sundar lekhni jo vykt karti samay ki prabhuta aaj goraiya dekhne matr ko bhi to nahi es shahri kshetr main ! ati sundar !
क्रोध से भरी तेजस्वी रचना की लिए बधाई गुल सारिका जी
तब
आस्मां में उड़ने के साथ साथ
जमी पर भी पैर मेरे होंगे
क्योंकि
तुम्हारे निजाम में
आधी जमींदारी हमारी भी है|
क्या कहते हो ???.........................वाह! बहुत हिम्मत भरी ऊर्जस्वी रचना,
हार्दिक बधाई प्रिय गुल सारिका जी
अच्छी भाव दशा एवं सुन्दर निरूपण के लिए हार्दिक बधाई
रचना प्रभावशाली है। बधाई।
विजय निकोर
ऊर्जस्विता और ओजस्विता से पगी भाव-रचना के लिए बधाई, गुल सारिकाजी.
//बाज आ जाओ वरना
अब मैं नाखून उगाना सीख लुंगी
और तब
आस्मां में उड़ने के साथ साथ
जमी पर भी पैर मेरे होंगे//
आदरेया सीमा जी ने सच ही कहा है ...जगाती हुई इस रचना के लिए साधुवाद |
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