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ग़ज़ल : नाव ही नाख़ुदा हो गई

राहबर जब हवा हो गई
नाव ही नाखुदा हो गई

प्रेम का रोग मुझको लगा
और दारू दवा हो गई

जा गिरी गेसुओं में तेरे
बूँद फिर से घटा हो गई

चाय क्या मिल गई रात में
नींद हमसे खफ़ा हो गई

लड़ते लड़ते ये बुज़दिल नज़र
एक दिन सूरमा हो गई

जब सड़क पर बनी अल्पना
तो महज टोटका हो गई

माँ ने जादू का टीका जड़ा
बद्दुआ भी दुआ हो गई

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 11, 2013 at 8:25pm

धन्यवाद  आशीष नैथानी 'सलिल' जी

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on January 11, 2013 at 7:10pm

माँ ने जादू का टीका जड़ा

बद्दुआ भी दुआ हो गई........   Bahut Khoob !!!!

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 11, 2013 at 6:54pm

धन्यवाद  SANDEEP KUMAR PATEL साहब

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 11, 2013 at 6:53pm

शुक्रिया  PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA जी

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on January 11, 2013 at 4:44pm
आदरणीय धर्मेन्द्र सर जी सादर प्रणाम 
बहुत सुन्दर अशआर हैं  छोटी बहर में  कमाल कर दिया आपने  
ढेरों दाद क़ुबूल कीजिये 
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on January 11, 2013 at 4:15pm

माँ ने जादू का टीका जड़ा

बद्दुआ भी दुआ हो गई 

एक से बढ़ कर एक , सर जी 

सादर बधाई. 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 11, 2013 at 1:45pm

शुक्रिया  Dr.Prachi Singh जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 11, 2013 at 1:45pm

बहुत बहुत शुक्रिया नादिर ख़ान साहब


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 11, 2013 at 12:34pm

चाय क्या मिल गई रात में

नींद हमसे खफ़ा हो गई...........सामान्य सी बात को कितनी ख़ूबसूरती से शेर में ढाला है, वाह 

हार्दिक बधाई इस ग़ज़ल के लिए.

Comment by नादिर ख़ान on January 10, 2013 at 11:35pm

माँ ने जादू का टीका जड़ा

बद्दुआ भी दुआ हो गई 

बहुत सही कहा अदरणीय धर्मेंद्र जी.

माँ की दुआ मे वो ताकत है की ज़हर को भी अमृत कर दे .

वैसे सभी शेर लाजवाब  हैं.

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