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बहुत बहुत आभार प्रिय शुभ्रांशु भाई, आपको कथा पसंद आयी, लेखन सफल हुआ ।
...लघुकथा बहुत प्रेरक है!...भोलेभाले मनुष्यों का कुछ स्त्री-पुरुष क़ानून का दुरूपयोग कर के, कितना गलत फायदा उठाते है यह बताया गया है!
आदरणीय बाग़ी जी
सादर
यह कथा काल्पनीक नही है . ईमानदार एवं संस्कारी लोगों को ऐसे कष्ट उठाने ही पड़ते हैं.
बधाई.
संस्कार जरूरी नहीं की अमीरों की ही जागीर हो,इस पक्ष को बहुत सुन्दर तरीके से उभारा है इस लघु कथा में ,कई बार पत्थरों में हीरा मिल जाता है वहीँ हीरों में पत्थर भी। इस सारगर्भित ,विचारणीय लघु कथा के लिए बधाई गणेश जी
आहा !! आदरणीय आचार्य जी, आपसे सराहना पाना, प्रशस्ति पत्र पाने सदृश है, मैं बहुत हर्षित हूँ , आभार आदरणीय ।
samyik, sargarbit aur sashakt laghukatha. sadhuvaad.
आदरणीय गणेश सर जी
आपने जो पक्ष रखा है वो भी इक हकीकत है
कभी कभी ज्यादा इमानदार होना भी हानिकारक हो जाता है
और जब मामला कुदृष्टि का हो कुकर्मों का हो
वाह वाह राजू .....आह राजू
बधाई हो
गणेश, फिर एक अच्छी कथा के लिये बधाई. एक नौकर की वफादारी भी उसे अजीब परिस्थितियों में दगा दे गयी..आँखे खोलने वाली बात है.
बहुत सुन्दर लघुकथा . वासना का कृष्ण पक्ष किस तरह नमकहलाली एवं वफादारी को स्याह कर देता है ... इसका बेजोड़ चित्रण किया है आपने . बहुत - बहुत बधाई गणेश जी
जागते रहो फ़िल्म के राजु को साकार कर दिया आपने,
बहुत सुन्दर कथा,,,, जब सारा तथाकथित जागरुक समाज महिलाओं का मोमबत्ती जला कर साथ दे रहा है, तब एक अलग नजरिये की कथा ले कर आना साहस का काम है. समाज के कृष्ण पक्ष को ही सामने रखा है आपने.
सादर
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