स्वयं के आंसुओं से ,
कपोल उसका झुलस गया !
दया हाय! आयी मुझको ,
मेरा भी अश्रु बह गया !!
अपनो के लिए उसकी ,
पत्थर तोड़ती माता !
भूंख से छटपटाता बच्चा,
हाय! पाषाण ह्रदय विधाता !!
असहनीय पीड़ा से रो रही थी ,
नम आँखों से दर्द धो रही थी !
कई दिनों की भूंखी बेचारी ,
खुली आँखों से सो रही थी !
उसके आँख का खारा पानी ,
यह कह रहा था !
दिल में कहीं गम का ,
समंदर बह रहा था !!
दम तोड़ती ज़िन्दगी ,
दम तोड़ती मानवता !
कहीं ना कहीं इनमे ,
ज़रूर थी समानता !!
राम शिरोमणि पाठक "दीपक"
मौलिक /अप्रकाशित
Comment
राम शिरोमणि जी:
यह दर्द भरी कविता ही नहीं है,
यह सचाई है। बधाई।
विजय निकोर
मार्मिक एवं भावयुक्त रचना. बधाई.
दम तोड़ती ज़िन्दगी ,
दम तोड़ती मानवता !
कहीं ना कहीं इनमे ,
ज़रूर थी समानता !!
पूरी रचना जानदार
दिल की गहराइयों में उतर गयी.
बधाई
दया हाय! आयी मुझको ,
मेरा भी अश्रु बह गया !! दया से अश्रु बहते हैं जी या पीड़ा से ?
अपनो के लिए उसकी ,
पत्थर तोड़ती माता !
भूंख से छटपटाता बच्चा,
हाय! पाषाण ह्रदय विधाता !! विधाता का क्या दोष ?
असहनीय पीड़ा से रो रही थी ,
नम आँखों से दर्द धो रही थी !
कई दिनों की भूंखी बेचारी ,
खुली आँखों से सो रही थी !
उसके आँख का खारा पानी ,
यह कह रहा था !
दिल में कहीं गम का , बहुत सुंदर कथ्य
समंदर बह रहा था !!
दम तोड़ती ज़िन्दगी ,
दम तोड़ती मानवता ! मानवता का चित्र ढूंढे नहीं मिला
कहीं ना कहीं इनमे ,
ज़रूर थी समानता !!
रचना प्रक्रिया में कडि़यां नहीं जुड़ रही है, भावप्रधान रचना में मर्म तो बहुत है पर उनका संबंध भी होना चाहिए, सादर
असहनीय पीड़ा से रो रही थी ,
नम आँखों से दर्द धो रही थी !
कई दिनों की भूंखी बेचारी ,
खुली आँखों से सो रही थी !
उसके आँख का खारा पानी ,
यह कह रहा था !
दिल में कहीं गम का ,
समंदर बह रहा था
बहुत खूब ! सुन्दर शब्द !
एक निर्धन की भूख से मौत होती है तो सच में मानवता की मौत होती है बहुत सही कहा आपने ,बहुत मार्मिक प्रस्तुति ,ऐसे द्रष्य बहुदा नजरों के सामने से गुजरते हैं बधाई इस प्रस्तुति हेतु
बहुत ही दर्द है आपकी कविता में,,,,इतनी मार्मिक ,,,शब्द नहीं है मेरे पास बहुत सुंदर,,,,
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