जुरत-आमोज मेरे दिल ये क्या किया तूने
खगूर-ए-हम्द से भी कर लिया गिला तूने
फ़िक्रे-फ़र्दा न कोई गम कभी रहा हमको
कजा से संग दिल मेरे बचा लिया तूने
सुखन में आ गए हो ऐब ढूँढने लेकिन
हमनवा ये बता कितना जहर पिया तूने
अजल से चल रहा है क्या कभी ये सोचा है
रिवाजो रस्म क्या सब कुछ बदल दिया तूने
खुदा से मांग लो अब गैर के लिए भी कुछ
जिया अपने लिए तो "दीप" क्या जिया तूने ??
संदीप पटेल "दीप"
जुरत-आमोज - साहस सिखाने वाला
खगूर-ए-हम्द - प्रशंसा करने के आदी
फ़िक्रे-फ़र्दा - कल की चिन्ता
Comment
बड़ी टेढ़ी जुबान है संदीप जी, अपने तो सिर के ऊपर से ही निकल जाती यदि आपने शब्दार्थ नहीं दिया होता, आपका अभिवादन करता हूं इस पेशकश पर, सादर
मित्रवर संदीप भाई बधाई बाकी सब आदरणीय गुरुदेव श्री ने ही कह दिया है. सादर
मतले और पहले शेर पर मैं अब क्या कहूँ. ग़ज़ल के क्षेत्र में हो रहे इंकलाब के बरअक्स मैं इस तरह के किसी विन्यास को ख़ारिज़ करता हूँ. ख़ैर, पसंद अपनी-अपनी ख़याल अपना-अपना.
लेकिन जो शेर हुए हैं, वे अवश्य ही कहते हुए हैं शेर हैं.
सुखन में आ गए हो ऐब ढूँढने लेकिन
हमनवा ये बता कितना जहर पिया तूने
यह बहुत ही मार्के का शेर है, संदीप भाई. लेकिन इसका सानी बह्र वज़्न से दोहरा नहीं हुआ जा रहा है ? तभी तो मुझे बह्र के बाहर दिख रहा है.
खुदा से मांग लो अब गैर के लिए भी कुछ
जिया अपने लिए तो "दीप" क्या जिया तूने ??
बहुत सही कहा है. निहित भाव खुल कर ही नहीं निखर कर बाहर आये है.
बहुत-बहुत बधाइयाँ.
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