शीत जैसे जम गयी,
नम धूप लगती है।
ठिठुरते रात भर
सार में सारे ही पशु
भोर कि शाला में
ठिठुरते सारे ही शिशु,
फिजां रंगीन दिखे
मन रूप लगती है।
द्वार बंद है शाम से बंद
खिडकी और झरोखे,
द्वार पर होती हो दस्तक
कम हैं ऐसे भी मौके,
करें तंग दरारें,गुजरती
हवा खूब लगती है।
उपरोक्त रचना स्वरचित व अप्रकाशित है.
Comment
हार्दिक आभार आदरणीया दिव्या जी सादर.
आदरणीय अशोक सर ..
बहुत -२ बधाई .. नवगीत के लिए .. सुंदर भावाभिव्यक्ति ..
आदरणीय लड़ीवाला साहब सादर प्रणाम, मैंने आदरणीय सौरभ जी से कुछ मार्गदर्शन पाकर प्रथम ही नवगीत रचने का प्रयास किया है.आपसे कुछ पंक्तियों के भाव पर सराहना पाकर बहुत हर्ष हुआ. हार्दिक आभार.
आदरणीय राजेश कुमार झा जी सादर, आपकी रचनाओं पर भाव सम्प्रेषण तो देखते ही बनता है तब आपसे सराहना पाकर मन हर्षित है. हार्दिक आभार.
आदरेया डॉ. प्राची जी सादर, आपके कहे को मै समझ पा रहा हूँ छोटी छोटी त्रुटियों पर ध्यान देने का अवश्य ही प्रयास करूँगा.सादर आपका निरंतर सहयोग लेखन कि बारीकियों को जानने में मदतगार रहा है. इस नव प्रयास कि कुछ पंक्तियाँ आपको अच्छी लगी जानकर प्रसन्नता हुई. हार्दिक आभार.
आदरणीय सौरभ जी सादर, हार्दिक आभार.
सुन्दर भाव लिए नवगीत पर सुन्दर प्रयास के लिए हार्दिक बधाई भाई श्री अशोक रक्ताले जी । निम्न शब्दों ने तो मन को प्रसन्न कर दिया - भोर कि शाला में,
ठिठुरते सारे ही शिशु,
गुजरती हवा खूब लगती है।
बहुत बढि़या अभिव्यक्ति है आपकी, सूक्ष्म निरीक्षण का भाव सहज ही स्पष्ट है, आगे भी आपके नवगीत पढ़ने को प्रेरित मन बहुत कुछ आशा कर रहा है, सादर
आदरणीय अशोक रक्ताले जी ,
नवगीत पर आपका यह प्रयास रुचिकर है, सुन्दर है...
भोर कि शाला में----------------यहाँ शायद की है,
ठिठुरते सारे ही शिशु,
यह पंक्ति बहुत नयी सी और सुन्दर लगी,
हार्दिक बधाई इस सार्थक नवप्रयास पर.
द्वार पर होती हो दस्तक
कम हैं ऐसे भी मौके,
करें तंग दरारें,गुजरती
हवा खूब लगती है।
इन अनुभवजन्य पंक्तियों के लिए बहुत-बहुत बधाई, आदरणीय अशोकजी. आपके सतत प्रयास पर हार्दिक शुभकामनाएँ.. .
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