For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इक प्रयोग "दुर्मिल ग़ज़ल "

इक प्रयोग "दुर्मिल ग़ज़ल "

सपने किसके किससे कम हैं
सबके अपने अपने गम हैं

पर पीर नहीं दिखती अब तो
हर मानव पत्थर के सम हैं

अपने अफई बन के डसते
बस सोच यही अँखियाँ नम हैं

भरते दम ख्वाब सजा कल के
मन दंभ भरे सब बेदम हैं

खुद को कह वारिस संस्कृति के
फिरते कितने अब गौतम हैं

न विरोध कहीं न बगावत है
सब चोर अभी तक कायम हैं

सब दीमक पाल रहे खुद ही
वन में अब साल न शीशम हैं

अब "दीप" बसंत नहीं खिलता
बस रंज भरे हर मौसम हैं

संदीप पटेल "दीप"

"2 दुर्मिल सवैया छंद"

सपने किसके किससे कम हैं सबके अपने अपने गम हैं
पर पीर नहीं दिखती अब तो हर मानव पत्थर के सम हैं
अपने अफई बन के डसते बस सोच यही अँखियाँ नम हैं
भरते दम ख्वाब सजा कल के मन दंभ भरे सब बेदम हैं

खुद को
कह वारिस संस्कृति के फिरते कितने अब गौतम हैं
न विरोध कहीं न बगावत है सब चोर अभी तक कायम हैं
सब दीमक पाल रहे खुद ही वन में अब साल न शीशम हैं
अब "दीप" बसंत नहीं खिलता बस रंज भरे हर मौसम हैं

संदीप पटेल "दीप"

Views: 912

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 6, 2013 at 4:54pm

आदरणीय राजेश झा जी सादर प्रणाम

आपकी इस तरह बेसाख्ता दाद मिलना रसगुल्लों से कम नहीं है

इसके लिए मैं आपका आभारी हूँ

स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 6, 2013 at 4:53pm

आदरणीय लक्ष्मण सर जी सादर प्रणाम

इस प्रयास को सराहने और हौसलाफजाई के लिए आपका ह्रदय से धन्यवाद
ये स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 6, 2013 at 4:50pm

आदरणीय भाई संदीप जी सादर

इस प्रयास को सरहने और उत्साहवर्धन करने हेतु आपका तहे दिल से शुक्रिया और सादर आभार

स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 6, 2013 at 4:49pm

आदरणीय वीनस सर जी बड़े दिनों बाद आपकी दाद मिलना मेरे लिए अमृत तुल्य ही है सच मानिए आपकी दाद पा कर मन सातवे आसमान में होता है

आप ये स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

आपका तहे दिल से शुक्रिया और सादर आभार

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 6, 2013 at 4:43pm

आदरणीय गणेश बागी सर जी सादर प्रणाम

इस प्रयास को सराहने हेतु आपका बहुत बहुत धन्यवाद और आभार

अब सच कहूँ तो आप विज्ञ जनों का इस तरह उत्साहित करना मुझसे तो प्रसन्नता के मारे कुछ कहा भी नहीं जा रहा है

बस शारदा की कृपा है और आप बड़ों का स्नेह पूर्ण आशीर्वाद इसे यूँ ही बनाए रखिये अनुज पर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 6, 2013 at 4:30pm

बहुत बहुत सुन्दर ग़ज़ल और दुर्मिल सवैये की गेयता, बहुत बहुत सुन्दर सफल व अभिनव प्रयोग के लिए हार्दिक बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 6, 2013 at 2:19pm

वाह वाह प्रिय संदीप क्या शानदार दुर्मिल सवैया से  ग़ज़ल  लिखी है शब्द कम पड़ रहे हैं तारीफ के लिए बाकी सब ने कह ही दिया  है हार्दिक बधाई माँ सरस्वती कि अनुकम्पा इसी तरह बनी रहे  

Comment by राजेश 'मृदु' on February 6, 2013 at 2:04pm

संदीप जी, आपने तो एक नई विधा को ही जन्‍म दे दिया, दुर्मिल गज़ल  । कितनी बधाईयां दूं जो कम ना पड़े,सच कहता हूं सामने होते तो सवा सेर रसगुल्‍ले जरूर खिलाता, सादर

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 6, 2013 at 11:47am
सपने किसके किससे कम हैं सबके अपने अपने गम हैं 
पर पीर नहीं दिखती अब तो हर मानव पत्थर के सम हैं--बहुत खूब सब अपने सपने और गम में खोये बुत से  है 
खुद को कह वारिस संस्कृति के फिरते कितने अब गौतम हैं --ये अहसास ही संस्कृति के अवमूल्यन का कारण है 
सुन्दर प्रयोग के  लिए हार्दिक बधाई श्री संदीप कुमार पटेल भाई 
 
Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on February 6, 2013 at 11:14am

क़ाबिले तआरीफ़ प्रयास संदीप जी.

छंद और बह्र को एकाकार करने में आप पूर्णतः सफल रहे हैं! शिल्प, कथ्य व भाव हर लिहाज़ से एक बेहतरीन प्रस्तुति! बधाईयां.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय धर्मेन्द्र भाई, आपसे एक अरसे बाद संवाद की दशा बन रही है. इसकी अपार खुशी तो है ही, आपके…"
15 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

शोक-संदेश (कविता)

अथाह दुःख और गहरी वेदना के साथ आप सबको यह सूचित करना पड़ रहा है कि आज हमारे बीच वह नहीं रहे जिन्हें…See More
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"बेहद मुश्किल काफ़िये को कितनी खूबसूरती से निभा गए आदरणीय, बधाई स्वीकारें सब की माँ को जो मैंने माँ…"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई। कोई लौटा ले उसे समझा-बुझा…"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आयोजनों में सम्मिलित न होना और फिर आयोजन की शर्तों के अनुरूप रचनाकर्म कर इसी पटल पर प्रस्तुत किया…"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
Tuesday
Admin posted discussions
Monday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service