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आदरणीय राजेश झा जी सादर प्रणाम
आपकी इस तरह बेसाख्ता दाद मिलना रसगुल्लों से कम नहीं है
इसके लिए मैं आपका आभारी हूँ
स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
आदरणीय लक्ष्मण सर जी सादर प्रणाम
इस प्रयास को सराहने और हौसलाफजाई के लिए आपका ह्रदय से धन्यवाद
ये स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
आदरणीय भाई संदीप जी सादर
इस प्रयास को सरहने और उत्साहवर्धन करने हेतु आपका तहे दिल से शुक्रिया और सादर आभार
स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
आदरणीय वीनस सर जी बड़े दिनों बाद आपकी दाद मिलना मेरे लिए अमृत तुल्य ही है सच मानिए आपकी दाद पा कर मन सातवे आसमान में होता है
आप ये स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
आपका तहे दिल से शुक्रिया और सादर आभार
आदरणीय गणेश बागी सर जी सादर प्रणाम
इस प्रयास को सराहने हेतु आपका बहुत बहुत धन्यवाद और आभार
अब सच कहूँ तो आप विज्ञ जनों का इस तरह उत्साहित करना मुझसे तो प्रसन्नता के मारे कुछ कहा भी नहीं जा रहा है
बस शारदा की कृपा है और आप बड़ों का स्नेह पूर्ण आशीर्वाद इसे यूँ ही बनाए रखिये अनुज पर
बहुत बहुत सुन्दर ग़ज़ल और दुर्मिल सवैये की गेयता, बहुत बहुत सुन्दर सफल व अभिनव प्रयोग के लिए हार्दिक बधाई
वाह वाह प्रिय संदीप क्या शानदार दुर्मिल सवैया से ग़ज़ल लिखी है शब्द कम पड़ रहे हैं तारीफ के लिए बाकी सब ने कह ही दिया है हार्दिक बधाई माँ सरस्वती कि अनुकम्पा इसी तरह बनी रहे
संदीप जी, आपने तो एक नई विधा को ही जन्म दे दिया, दुर्मिल गज़ल । कितनी बधाईयां दूं जो कम ना पड़े,सच कहता हूं सामने होते तो सवा सेर रसगुल्ले जरूर खिलाता, सादर
क़ाबिले तआरीफ़ प्रयास संदीप जी.
छंद और बह्र को एकाकार करने में आप पूर्णतः सफल रहे हैं! शिल्प, कथ्य व भाव हर लिहाज़ से एक बेहतरीन प्रस्तुति! बधाईयां.
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