मित्रों, कई दिन के बाद एक ग़ज़ल के चंद अशआर हो सके हैं, आपकी मुहब्बतों के नाम पेश कर रहा हूँ
वो हर कश-म-कश से बचा चाहती है |
वो मुझसे है पूछे, वो क्या चाहती है |
यूँ तंग आ चुकी है इन आसानियों से,
हयात अब कोई मसअला चाहती है |
उन्हें सोच लूँ या करूँ इसको पूरी,
ये ताज़ा ग़ज़ल जो हुआ चाहती है |
ये नाज़ुक सा रिश्ता रहे ? टूट जाये ?
समझ में न आए वो क्या चाहती है |
पढ़ो खुद को 'वीनस' समझ जाओगे तुम,
अभी शाइरी तज्रिबा चाहती है |
Comment
वाह वाह वाह
क्या बात कही है
अभी शाइरी तज्रिबा चाहती है |
इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए ढेरों दाद क़ुबूल कीजिये साहब
पूरी की पूरी गजल इतनी अच्छी है कि बार-बार पढ़ने को जी चाहता है । बहुत ही खूबसूरत ।
वाह भाई वाह..
अभी शायरी तज्रिबा चाहती है.. -- क्या शानदार बात कही आपने!
लाजवाब पुरकशिश ग़ज़ल पर मुबारकबाद.
हयात अब कोई मसअला चाहती है-- बहुत ख़ूब कहा...
मतला माशाअल्लाह ! इसे कहते हैं कहना तो दीखे पर किसको कहा यह पाठक सोच ले. हमने राजनैतिक दायरे में सोचा .. हा हा हा...
मग़र किस एक शेर अलग करूँ ? लाज़वाब ! .. मतले के बाद हर शेर पर समझिये वाह-वाह करते गला बैठा जा रहा है.
बहुत बहुत बधाई एक क़ामयाब ग़ज़ल पर.
ये नाज़ुक सा रिश्ता रहे ? टूट जाये ?
समझ में न आए वो क्या चाहती है |
बहुत पसंद आया ये शेर दाद कबूले इस सुंदर ग़ज़ल के लिए ,पहले शेर में बचा का प्रयोग क्या बचाव या बचना के सन्दर्भ में किया है क्या?
वाह क्या बात है वीनस भाई ,,,,,बहुत बहुत मुबारकबाद आपको,,,,
ये नाज़ुक सा रिश्ता रहे ? टूट जाये ?
समझ में न आए वो क्या चाहती है |
वाह वीनस भाई आपकी हर बात निराली है
शब्दों को जहाँ बैठा देते है वहीं का होकर रह जाता है
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online