For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - वो हर कश-म-कश से बचा चाहती है

मित्रों, कई दिन के बाद एक ग़ज़ल के चंद अशआर हो सके हैं, आपकी मुहब्बतों के नाम पेश कर रहा हूँ

वो हर कश-म-कश से बचा चाहती है |

वो मुझसे है पूछे, वो क्या चाहती है |

यूँ तंग आ चुकी है इन आसानियों से,

हयात अब कोई मसअला चाहती है |

उन्हें सोच लूँ या करूँ इसको पूरी,

ये ताज़ा ग़ज़ल जो हुआ चाहती है |

ये नाज़ुक सा रिश्ता रहे ? टूट जाये ?

समझ में न आए वो क्या चाहती है |

पढ़ो खुद को 'वीनस' समझ जाओगे तुम,

अभी शाइरी तज्रिबा चाहती है |

Views: 844

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 5, 2013 at 7:00pm

वाह वाह वाह

क्या बात कही है


अभी शाइरी तज्रिबा चाहती है |

इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए ढेरों दाद क़ुबूल कीजिये साहब

Comment by राजेश 'मृदु' on February 5, 2013 at 6:34pm

पूरी की पूरी गजल इतनी अच्‍छी है कि बार-बार पढ़ने को जी चाहता है । बहुत ही खूबसूरत ।

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on February 5, 2013 at 3:41pm

वाह भाई वाह..

अभी शायरी तज्रिबा चाहती है.. -- क्या शानदार बात कही आपने!

लाजवाब पुरकशिश ग़ज़ल पर मुबारकबाद.

हयात अब कोई मसअला चाहती है-- बहुत ख़ूब कहा...


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 5, 2013 at 3:39pm

मतला माशाअल्लाह ! इसे कहते हैं कहना तो दीखे पर किसको कहा यह पाठक सोच ले. हमने राजनैतिक दायरे में सोचा .. हा हा हा... 

मग़र किस एक शेर अलग करूँ ?  लाज़वाब ! .. मतले के बाद हर शेर पर समझिये वाह-वाह करते गला बैठा जा रहा है.

बहुत बहुत बधाई एक क़ामयाब ग़ज़ल पर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 5, 2013 at 12:53pm

ये नाज़ुक सा रिश्ता रहे ? टूट जाये ?

समझ में न आए वो क्या चाहती है |

 बहुत पसंद आया ये शेर दाद कबूले इस सुंदर ग़ज़ल के लिए  ,पहले शेर में बचा का प्रयोग क्या बचाव या बचना के सन्दर्भ में किया है क्या?

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on February 5, 2013 at 12:45pm

वाह क्या बात है वीनस भाई ,,,,,बहुत बहुत मुबारकबाद आपको,,,,

Comment by नादिर ख़ान on February 5, 2013 at 10:29am

ये नाज़ुक सा रिश्ता रहे ? टूट जाये ?

समझ में न आए वो क्या चाहती है |

वाह वीनस भाई आपकी हर बात निराली है 

शब्दों को जहाँ बैठा देते है वहीं का होकर रह जाता है 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
14 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
14 hours ago
Tilak Raj Kapoor updated their profile
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
15 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। समाँ वास्तव में काफिया में उचित नही…"
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, हार्दिक धन्यवाद।"
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई तिलक राज जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, स्नेह और विस्तृत टिप्पणी से मार्गदर्शन के लिए…"
15 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तिलकराज कपूर जी, पोस्ट पर आने और सुझाव के लिए बहुत बहुत आभर।"
15 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service