सन्नाटे के भूत मेरे घर आने लगते हैं
छोड़ मुझे वो जब जब मैके जाने लगते हैं
उनके गुस्सा होते ही घर के सारे बर्तन
मुझको ही दोषी कहकर चिल्लाने लगते हैं
उनको देख रसोई के सब डिब्बे जादू से
अंदर की सारी बातें बतलाने लगते हैं
ये किस भाषा में चौका, बेलन, चूल्हा, कूकर
उनको छूते ही उनसे बतियाने लगते हैं
जिसकी खातिर खुद को मिटा चुकीं हैं, वो ‘सज्जन’
प्रेम रहित जीवन कहकर पछताने लगते हैं
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(यह ग़ज़ल स्वरचित एवं अप्रकाशित है)
Comment
वाह भई वाह वाह
क्या कमाल की ग़ज़लगोई है आहंग और अरूज का क्या खूबसूरत मंज़र पेश किया है
हर एक शेअर शानदार है
उनके गुस्सा होते ही घर के सारे बर्तन
मुझको ही दोषी कहकर चिल्लाने लगते हैं
इस शेअर के लिए अलग से बधाई स्वीकारें
जिंदाबाद भाई जिंदाबाद
जिसकी खातिर खुद को मिटा चुकीं हैं, वो ‘सज्जन’
प्रेम रहित जीवन कहकर पछताने लगते हैं
बहुत खूब कहा आदरणीय धर्मेंद्र जी...
जहाँ प्रेम है, वहीं शिकवा शिकायतें भी हैं ....
अद्भुत प्रेम का बखान किया आपने....वाह.. सुन्दर....
आदरणीय धर्मेन्द्र सिंह जी, आपकी यह मुसल्ल्सल ग़ज़ल अच्छी लगी ।
//उनके गुस्सा होते ही घर के सारे बर्तन
मुझको ही दोषी कहकर चिल्लाने लगते हैं//
इस शे'र पर विशेष दाद प्रेषित करता हूँ , बहुत बहुत बधाई ।
सन्नाटे के भूत मेरे घर आने लगते हैं
छोड़ मुझे वो जब जब मैके जाने लगते हैं...वाह क्या बात है!
बहुत सुन्दर ग़ज़ल, बहुत बहुत बधाई धर्मेन्द्र सिंह जी
उनको देख रसोई के सब डिब्बे जादू से
अंदर की सारी बातें बतलाने लगते हैं
ये किस भाषा में चौका, बेलन, चूल्हा, कूकर
उनको छूते ही उनसे बतियाने लगते हैं--------सब बर्तन आपकी शिकायत करने लगते होंगे हा हा हा बहुत मजेदार ग़ज़ल अलग हटके दाद कबूल करें आदरणीय धर्मेंद्र जी
jab jab bhaye unko mayka aap bhi badliye apne dil ka jayka .ye baat aap kar dijiye aam bo bapis aa jayengi hote hi sham badhai sunder bedna
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