उर्वशी की बाहर पुकार हो रही थी। वह शीशे के आगे खड़ी अपना चेहरा संवारती -निहारती कुछ सोच में थी। तभी फिर से उर्वशीईइ .....! नाम की पुकार ने उसे चौंका दिया।
उर्वशी उसका असली नाम तो नहीं था पर क्या नाम था उसका असल में , वह भी नहीं जानती !
अप्सराओं की तरह बेहद सुंदर रूप ने उसका नाम उर्वशी रखवा दिया और भूख -गरीबी और मजबूरी ने उसे स्टेज -डांसर बना दिया। वह छोटे - बड़े समारोह या विवाह समारोह में डांस कर के परिवार का भरण -पोषण करती है अब , आज-कल।
गन्दी , कामुक , लपलपाती नज़रों के घिनोने वार झेलना उसके लिए बहुत बड़ी बात नहीं थी। वह इसे भी अपने काम का ही एक हिस्सा समझती थी। उसकी नजर सिर्फ रुपयों पर होती थी बस निर्विकार सी अपना काम किये जाती यानी कि नृत्य पर ही ध्यान देती थी।लेकिन आज उसका मन बहुत अशांत हो गया जब उसने एक आदमी ,जो कि दुल्हन के सर पर बहुत स्नेह से हाथ फिर रहा था। आदमी की नज़रों में कितना दुलार , स्नेह प्यार था उस दुल्हन के लिए ...
थोड़ी ही देर में वह स्टेज के पास आया और उर्वशी को जिन नज़रों से देखा तो वह अंदर से कट कर रह गयी। मन रो पड़ा उसका , " क्या मैं किसी की बेटी नहीं ...! इसकी नज़रों में मैं एक स्त्री -देह मात्र ही हूँ , नाचने वाली सिर्फ ..., किसी इन्सान की नज़रे ऐसे इतनी जल्दी कैसे बदल जाती है ...! शरीफ लोगों की यह कैसे शराफत है ....!"
सोचते -सोचते रो पड़ी लेकिन आंसू पोंछते हुए स्टेज की तरफ बढ़ गयी जहाँ उसकी पुकार हो रही थी।
( मौलिक और अप्रकाशित )
Comment
औरत की मजबूरी उससे क्या न कर दे .. आप की कहानी दिल को छू गयी उपासना जी बधाई स्वीकारें
आदरणीया उपासना जी
बदलती नज़रें ... बदलती नियति .... समाज का शोषण , समाज के ही द्वारा .. मार्मिक ह्रदय दशा का वर्णन
शुभकामनाएं
सादर
उपासना जी कमाल की लेखनी ...कम शब्दों मे गहरी बात कह दी अपने बहुत खूब.......
उपासना जी कथा मन को छू गई। समाज की स्थिति वैचारिक मंथन का समावेश द्रष्टव्य है।
उद्देश्यपूर्ण कहानी के लिए आपको बधाई उपासना जी..
कोई भी लड़की खुशी से यह पेशा नही अपनाती होगी, लेकिन कुछ और भी रास्ते होते होंगे...गंदी नज़रों से खुद को बचाना सिर्फ़ और सिर्फ़ स्त्री का ही विकल्प होता है .....
सोचने पर मजबूर करती कथा ...
उपासना जी इस कहानी के विषय में क्या कहूँ अन्दर तक झकझोर गई पुरुष वर्ग कि दोहरी मानसिकता को बखूबी दर्शाया गया है कहानी में जो एक सच्चाई है आपको हार्दिक बधाई इस बेहतरीन प्रस्तुति पर
आदरणीय अरुणा जी ..मजबूरी क्या नहीं करवाती ,फिर हर एक का अपना नजरिया की कौन कैसे पैसे कमाता है . हो सकता है उर्वशी को वही तरीका ज्यादा अच्छा समझ आया हो ....आपकी सराहना का हार्दिक धन्यवाद जी
आदरणीय गणेश जी , यह तो सत्य ही है की कोई अपनी बहन बेटियों को स्टेज पर नाचते क्यूँ देखना चाहेगा और कोई भी हीरो या हीरोइन को भाई या बहन क्यूँ समझेगा ...यहाँ बात तो औरत को औरत समझने की है ना की देह मात्र ही ...रिश्ते बदलते ही नज़रे बदल क्यूँ गयी ....उर्वशी तो मात्र कलाकार थी और कला बेच रही थी तो क्या देखने वालों की नज़रों में सिर्फ कला की प्रसंशा नहीं होनी चाहिए थी ....
आपकी सराहना का हार्दिक धन्यवाद जी ....
...क्या 'उर्वशी' उस परिवार का भरण पोषण करती है है..जिसने उसे इस हद तक नीचे गिरा दिया,कि उसे अपना नाम तक याद नहीं!
...कैसे कैसे परिवार है जो बेटियों का अपने स्वार्थ के लिए इस्तेमाल करते है!...इस लघुकथा में जमीनी सच्चाई है....बहुत बहुत बधाई!
लघुकथा अपने पीछे गहरे भाव छोडती हैं, मैं कई कई प्रश्नों से एक साथ घिर गया ......
क्या शादी विवाह में नाचने वाली प्रोफेशनल लड़कियों में बहन बेटी को देख सकेंगे ?
क्या कैटरिना , करीना .......की फिल्मे देखते हुये उनमे बहन का रूप देखना आसान होगा ?
कितनी लड़कियां सलमान खान में भाई का रूप देखती हैं ?
खैर मैं उत्तर ढूँढना बंद कर दिया, :-)
लघुकथा अच्छी है , बधाई स्वीकार करें ।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online