सूनेपन का रंग ...
पतझड़ के सूखे पत्तों -सा पीला,
मेले में खो गए भयभीत
बालक की नब्ज़-सा नीला,
या अमावस के गहन
अंधकार-सा गंभीर और काला,
सूनेपन का रंग
कैसा होता है?
घोर आतंक-सा वातावरण,
मौसम पर मौसम बेचैन,
जँगली हाँफ़ती हवाएँ
दानव-सी हँसी हँसती,
हर मास एक और पन्ना पलट
करता है गए मास का
अंतिम संस्कार।
पर सूनापन पड़ा रहता है,
वहीं का वहीं,
पुराने कपड़ों की गठरी-सा।
इस सूनेपन का रंग
सूनेपन में आज कोई पूछे मुझसे।
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(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय सौरभ जी और अजय जी:
मेरी इस कविता पर प्रतिक्रिया के लिए और
उत्साहवर्धन के लिए आपको मेरा हार्दिक आभार।
सादर,
विजय निकोर
वेदना का व्योम भले निपट काला हुआ करे, परन्तु वैयक्तिक वृत्तियों का अपरिहार्य स्पर्श उसे अर्थवान कर वर्णिक बनाता है. कविता प्रश्न भी है और स्वयं ही उत्तर भी है, हताशा के भावों को अभिव्यक्त करती. मानों, इस रचना के माध्यम से एकाकी पीड़ा मुहाने पा गयी है.
शुभ-शुभ
पर सूनापन पड़ा रहता है,
वहीं का वहीं,
पुराने कपड़ों की गठरी-सा।
इस सूनेपन का रंग
सूनेपन में आज कोई पूछे मुझसे। adarniy nikor sahib rachana dil choo gghai he badhai sweekare
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आदरणीया प्राची जी, वेदिका जी
और आदरणीय नादिर जी:
कविता के भाव और बिम्ब सराहने के लिए
आपका हार्दिक धन्यवाद।
सादर,
विजय
हर मास एक और पन्ना पलट
करता है गए मास का
अंतिम संस्कार।
पर सूनापन पड़ा रहता है,
वहीं का वहीं,
पुराने कपड़ों की गठरी-सा।
सूनापन अच्छी यादों को भी धुंधला कर देता है ।
एकाकीपन के दर्द को बहुत मर्मस्पर्शी शब्दों में शब्दबद्ध किया है आदरणीय,
बहुत सुन्दर शब्द-चित्र
सादर.
मौसम पर मौसम बेचैन.....करता है गए मास का
अंतिम संस्कार....पुराने कपड़ों की गठरी-सा
करुणता से भरपूर रचना !
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