आज बेमौत मर रहा होगा,
जो सवालों से डर रहा होगा ।
बाग़ की झुरमुटों में हलचल है,
नव युगल प्यार कर रहा होगा ।
अपने होने लगे हैं बेगाने,
कोई तो कान भर रहा होगा ।
खंडहर आज तक सलामत है
नींव कहती है घर रहा होगा ।
गुल छुपाने का फायदा क्या है,
बनके खुशबू बिखर रहा होगा ।
रौशनी हर कदम पे साथ रही,
"दीप" सा हमसफ़र रहा होगा ।
Comment
'बाग़ ' की जगह ' सरपत ' या ' ख़र ' ज्यादा जायज लगता है . ग़ज़ल अच्छी बनी है .
"रौशनी हर कदम पे साथ रही,
"दीप" सा हमसफ़र रहा होगा | " --- कहना नहीं होगा कि दीप सा अँधेरे में भी रौशनी दिखानेवाले साथी इस दौर में बमुश्किल नसीब होते हैं . ताख्लुस भी सही जगह पर है .
//दोनों मिसरैन में वर्तमान काल आ रहा है जो मतले को हल्का कर रहा है//
वीनसजी, रहा होगा का रदीफ़ अपने आप में विशेष भाव की अभिव्यक्ति का कारण है. यह मिसरे को भविष्य काल की होनी (घटना) को आश्वस्ति के साथ प्रस्तुत कर रहा है. और, मतले के उला और सानी को एक प्रवाह में यानि एक वाक्य के दो अंश समझ कर पढ़ें तो सानी में एक अंदाज़ है जो रदीफ़ से फिट हुआ बैठा है. यह निरंतरता ही इसे स्वीकार करने का कारण हुई है.
यह अवश्य है कि खंडहर वाले शेर में हुआ पर झटके लगे थे. लेकिन मुझे इस शेर की कहन बहुत ही ऊँची लगी है. हाँ शिल्प के ख़म को कहना चाहिये था जो बाद की टिप्पणियों के झोंके में उड़ गया.
ध्यानाकर्षण के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद और ढेर सारी बधाई.
शुभम्
आदरणीय संदीप जी:
अच्छा लिखते हैं।
बहुत, बहुत बधाई।
विजय निकोर
भावों का सुन्दर संयोजन. बधाई इस भावयुक्त रचना पर.
एक मुकम्मल ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकारें
पिछले कुछ दिन से न चाहते हुए भी चुप्पे पाठक की भूमिका में हूँ मगर आपकी इस ग़ज़ल ने देर तक रोके रखा और मन प्रसन्न हो गया
संदीप भाई आप तो कमाल ही कर रहे हैं आजकल
बाग़ की झुरमुटों में हलचल है,
नव युगल प्यार कर रहा होगा ।
अपने होने लगे हैं बेगाने,
कोई तो कान भर रहा होगा ।
मकता भी शानदार है
ढेरो ढेर बधाई
..........................................................................
तोमर जी का हार्दिक स्वागत है, उनकी बातों से सीख मिल रही है, वैसे अधिक खुशी होती अगर वो इस मिसरे की ओर ध्यान आकर्षित करवाते ...
// खँडहर वो ही हुआ करता है //
संदीप जी इस मिसरे पर पुनः गौर कीजिये
और मतले की कहन में हल्का सा दोष है
दोनों मिसरैन में वर्तमान काल आ रहा है जो मतले को हल्का कर रहा है
आपके मतला के मिसरा ए सानी में बात भूतकाल की होनी चाहिए
शुभकामनाओं सहित
अधोलिखित चर्चा के कुछ अंश देखे। मैं सिर्फ यह कहना चाहता हूं कि रचना अच्छी है। शायद चर्चा में रचना की सुन्दरता रह गयी। लोक संगीत को एक मान्यता के अनुसार शास्त्रीय संगीत के नियमों में कुछ छूट प्राप्त होती है।
वैस ईटीओ आज कल विन मात्राओं का लिहाज किये शेर दोहे चोपाई सब लिखी जा रही हैं... ???
कहीं यह पंक्ति वैसे तो आजकल बिना मात्रा का लिहाज किये शेर दोहे चौपाई सब लिखी जा रही हैं कहना तो नहीं चाह रही ??!
भाई संदीप तोमर जी, जैसा कि पूरा दीख रहा है, आप भिंड के छत्ते में पत्थर नहीं फेंके, बल्कि पूरा हाथ डाल बैठे हैं. अदब दिखाइये.. और अविलंब ओबीओ की ग़ज़ल की कक्षा में नामांकन करवाइये. आगे जानें आप.. जानें आपका काम.. .
सभी आदरणीय सदस्यों अग्रजों और सम्पादक महोदय जी से निवेदन है की ये विषय अब यहीं समाप्त किया जाये .......आदरणीय तोमर जी आपका आभारी हूँ ..................मैं भी एक मंच पे ऐसा बिना समझे बोले जाने का खामियाजा झेल रहा हूँ के मुझे ग़ज़ल क्या कहलाती है ये पता चल गया क्यूंकि मुझे अपने तर्क सही करने के लिए ग़ज़ल की जानकारी जरुरी हो गयी थी लेकिन सीखने के बाद पता चला मैं गलत था और उस बात के लिए आज तक शर्मिंदा भी खैर ................मुझे लगता है आपके लिए भी यहाँ बहुत सी संभावनाएं हैं ..........शुभकामनाओं सहित
ईटीओ???
बहुत अच्छी जानकारी, आदरणीय संदीप तोमर जी, आप कुछ रदीफ़ काफिया के बारे में भी बता रहे थॆ , और हर शेर की लम्बाई कैसे मापी जाय , कृपया इसके बारे में भी जानकारी दें |
//वैस ईटीओ आज कल विन मात्राओं का लिहाज किये शेर दोहे चोपाई सब लिखी जा रही हैं //
ईटीओ क्या होता है ?
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